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मेरी सदा-एक सजा

साधना के पथ पर
साधना के पथ पर
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मेरी सदा-एक सजा कुछ दिनों पहिले अन्जानी और मैं दिल्ली की लम्बी और चौड़ी परन्तु संकुचित सडकों से होते हुए एक गली से गुजरे तो तभी हमारी नज़र दिवार से लटकते हुए एक पिजड़े पर पड़ी जिसमे एक तोता कैद था. नज़र पड़ते ही मेरे होठों पर हसीं की कुछ फुलझड़िया फुट पड़ी. बिलकुल वैसे ही जैसे कि पुरानी और सड़ी हुई काठ पर बारिश के बूंदों के पड़ते ही कुकुरमुत्ते उग आते हैं. मेरे चेहरे की अकस्मात् हसीं को देखकर अन्जानी बोली, ” इसमे हँसने वाली कौन-सी बात है.” पर मैं अपनी ही दुनिया में लीन होने के कारण उसके सवालों को नज़रअंदाज करते हुए आगे बढ़ गया. ऐसे ही एक दिन का वाकया है; जब हम दोनों क़ुतुब मीनार की सैर करके अपनी कालोनी में प्रवेश किये तो तभी हमारी नज़र एक मदाड़ी वाले पर पड़ी जिसके हाथों में रस्सियों से बंधा एक बन्दर उसके इशारे पर नाचे जा रहा था.एक बार फिर मेरे होठों की हसीं को देखकर अन्जानी के होठों से निकलकर वही सवाल मेरे कानों पर दस्तक दिए. जिसे नज़रअंदाज करते हुए एक बार फिर मैं आगे बढ़ गया. मैं उस दिन रात को बिस्तर पर पड़ा छत से लटकते हुए सीलिंग फैन को देखे जा रहा था परन्तु दिल और दिमाग अब भी कहीं उन बन्दर और तोते पर लटका हुआ था. तभी गर्म कम्बल में मेरे बदन से लिपटती हुई अन्जानी के ठंडें हाथों ने मुझे चौका दिया. मेरे तरफ अपनी नज़र करते ही वह बोली, ” अनिल, तुम रो रहे हो.” मैं भी आश्चर्यचकित था खुद को रोते हुए पाकर नहीं बल्कि अचानक अपने आखों में आसुओं को देखकर क्योंकि मैं जानता हूँ कि मैं इस कदर रोता हूँ कि आखों से एक सैलाब गुजरता है परन्तु बेहोश, बेवक्त और बेवजह नहीं……………………………………………

अगली सुबह, मेरा आसमान में सूरज का इंतज़ार था. अन्जानी ने कहाँ, ” अब यहाँ बैठकर आसमान को क्या देखे जा रहे हो.” मैंने उसका हाथ अपनी तरफ खींचते हुए उसे अपने पास बैठाया. फिर हम दोनों एक सर-सरी निगाह से सूरज को निकलते हुए देखे जा रहे थे. तभी एक बार फिर उसके जुबान पर वही सवाल, “अनिल, तुमने बताया नहीं.” मैं अपनी निगाह सूरज से हटाकर उसके तरफ करते हुए कहाँ, ” वो, हाँ! क्यों नहीं. वो तोता पिंजरें में घुट-घुट कर एक-एक पल इस आस में काटता चला जाता है कि एक दिन वो पिंजरें से आजाद हो जायेगा और जिस दिन आजाद होता है. उस दिन उसके पंखों में इतनी जान नहीं रह जाती कि वह खुले आसमान में उड़ सके. नतीजतन वो किसी बाज़ का शिकार हो जाता है. मानों उसकी कोई अपनी जिंदगी ही नहीं. वो बन्दर मदाड़ी वाले के इशारे पर इस लिए नाचता रहता है कि उसके हाथों की रस्सी ढीली पड़ते ही वो भाग जायेगा. और जिस दिन वह भागने में कामयाब होता उस दिन उसके गल्ले में पड़े पट्टे को देखकर उसके अपने ही नोच-नोच कर मार देते हैं. अन्जानी, जानती हो, कुछ अपनी भी जिंदगी इस पिन्ज़रें में कैद तोते और रस्सियों से बधें बन्दर जैसी ही है. झूठी शान, मर्यादा और इज्जत के नामक रस्सियों से बाँधकर अपनों के द्वारा ही हम बच्चों के अधिकारों का हनन किया जाता है और इससे आजाद हो भी गए तो समाज द्वारा हमें दोषी ठहराकर मार दिया जाता है या फिर मरने के लिए मजबूर किया जाता है, हमारा समाज एक तरफ कहता है कि धर्म, व्यवस्था और न्याय के अनुसार चलों. परन्तु जब इससे उसके स्वार्थ और वर्चस्व को धक्का लगता है तो फिर कहता है कि नहीं मेरे अनुसार चलो क्योंकि धर्म, व्यवस्था और न्याय को जन्म हमने दिया है. इससे तो स्पष्ट होता है कि इस सड़ी-गली सामाजिक व्यवस्था के लिए स्वार्थ, सत्ता और वर्चस्व ही सब कुछ है तथा इसका धर्म, व्यवस्था और न्याय से दूर-दूर तक कोई सरोकार नहीं. एक तरफ हमारे समाज का धर्म और कानून कहता है कि एक लड़की की उसकी मर्ज़ी के बगैर उसका शादी करना गुनाह है और दूसरी तरफ हमारा समाज झूठे शान, इज्जत और मर्यादा के लिए यह गुनाह करते हुए उसके अरमानों की अस्थियाँ सजाता है. एक तरफ एक लड़की द्वारा अपनी मर्ज़ी से शादी करने पर उसके बाप द्वारा उसे वैश्या का नाम दिया जाता है और दूसरी तरफ सबकुछ जानते हुए उसका हाथ किसी और के हाथ में देकर उसे वैश्या बनाया जाता है. हद तो तब होती है जब एक सगी माँ अपनी मर्ज़ी से शादीशुदा लड़की को इज्जत और समाज की दुहाई देकर उसके पति से रिश्ता तोड़ने को कहती है और दूसरी शादी करने के लिए प्रेरित करती है. इससे भी हद तब होती है जब उस लड़की के पेट में पल रहे बच्चे को गिराकर उसकी दूसरी शादी करने के लिए उस लड़की को मानसिक रूप से मजबूर करती है.”
इस पर अन्जानी का सवाल, ” मतलब”. ……………” मतलब तो बस इतना है, अन्जानी! इस दोगले समाज के लिए स्वार्थ, सत्ता और वर्चस्व के आगे धर्म, मर्यादा, न्याय और इज्जत का कोई मोल नहीं……..या है तो सिर्फ इसलिए ताकि धर्म, मर्यादा, न्याय और इज्जत के नाम पर इसका स्वार्थ, सत्ता और वर्चस्व की फसल लह-लहाती रहे……….
( नोट- समाज के सच को और बेहतर ढंग से जानने के लिए मेरा अगला आलेख “मछली, मेढक और समाज” पढ़ना चाहें. )
चित्र गूगल इमेज साभार.

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