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एक बुड्ढे की हकीकत

साधना के पथ पर
साधना के पथ पर
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मैं हूँ अलीन मैं हूँ अलीन, जो पिछले कई दिनों से इस मंच पर उथल-पुथल मचाया हुआ है. इस मंच की मान-मर्यादा और शांति को जहाँ-तहाँ ऐसे बिखेरे हुए है. मानो कोई बच्चा किसी दुकानदार की शीशे की गोलियों के थैले से सारी गोलिया निकालकर जमीन पर बिखेर दी हो. मैं वो योद्धा हूँ जो हारने की चाह लिए युद्ध के मैदान में उतरता है परन्तु सामने वाला मुझे हराने की चाह में स्वयम हारते चला जाता है. मुझे लोगों की हार बर्दाश्त नहीं होती और ऐसे लोगो की हार तो कभी नहीं जो खुद को मर्यादित बताते हैं. अतः उनकी एक जीत की इच्छा लिए हमेशा उनसे लड़ता रहता पर अफ़सोस वो ह़र बार ही अपने अभिमान और खोखले आदर्शों से वशीभूत होकर अपनी ही तलवार अपने गर्दन पर मारते रहते हैं. आज पहली बार मुझे हार का सामना करना पड़ा हैं. अतः मेरे लिए यह जश्न मनाने का मौका है.

एक बुड्ढा, जो सागर की तरह गंभीरता, पर्वत की तरह स्वाभिमान, हवा की तरह चंचलता, सूरज की तरह तेज, चन्द्रमा की तरह शीतलता, नदियों की तरह गतिशीलता धारण किये हुए, जे जे मंच के नौजवानों के साथ-साथ छोटे-बड़े सबको अपने साहित्य, सेवा और सदाचार से प्रभावित किये हुए है. उसकी आकाश की तरह विशाल बाहें इस मंच के सभी ब्लागर्स को प्यार और भाई चारे के बंधन में जकड़े हुए और सिने से लगाये हुए है. वो हमेशा ही इस मंच पर हार कर जीतता रहता है और मैं ह़र बार ही उससे जीत कर हारता रहता हूँ. अतः मुझे भीख में मिली अपनी यह हार बर्दाश्त नहीं हुई. कई दिनों से उससे मिलने का मौका ढूंढ़ रहा था ताकि मैं देख सकू कि आख़िरकार क्या है उसके अन्दर जो वह हरबार ही मुझसे जीतता रहता है. इसी चाह में कल सुबह उसके कार्यालय जा धमका.

के बाप बन जाओगे.” कितना फर्क है एक बाप और एक नाना होने में. परन्तु इसे एक बाप को कैसे समझाया जाय कि जब एक बच्चा बाप बन जायेगा तो बाप भी बाप नहीं बल्कि दादा हो जायेगा.

कि क्यों मेरी हार और उसकी जीत असली थी. आज मैं बहुत खुश हूँ कि आख़िरकार जे जे रणक्षेत्र में कोई तो ऐसा योद्धा मिला जिसके आगे मैं अपनी हरेक बाजी हारा हूँ. वरना यहाँ तो हारने की चाह में हारते ही आया हूँ. यह पहली बार है जब मेरे हारने की चाह जीत में तब्दील हो पायी. आज ख़ुशी के मारे मेरी आखें नम है. मुझे तो अबतक यकीन नहीं होता कि दुनिया भर के सारे गम लिए कोई इंसान इतना प्यार और खुशियाँ बाट सकता है……..क्या आपको यकीन है……………………?

एक बुड्ढे की हकीकत

चंद सिक्कों की खन-खनाहट पर
सैकड़ों कदमो की आहट देखी.
सच से मुँह मोड़कर,
पूजना बेजान पत्थरों को,
लोगो की यह एक अजीब सी चाहत देखी.
सुकून मिला है आज मेरे दिल को बहुत कि
एक बुड्ढ़े के चेहरे पर सच्ची
मुस्कुराहट देखी.

सुबह, २५/ ०५/२०१२ ……………… …………………………………………………………………………………………..अनिल कुमार, ” अलीन”

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