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जो बचपन पल रहा फूटपाथों पे

साधना के पथ पर
साधना के पथ पर
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जो बचपन पल रहा फूटपाथों  पे,

कभी गर्मी, कभी वर्षा, कभी सर्दी;

भारी पड़ती उनके आरमानों पे. 

 

राते इनकी किस्मत में ,

काँटें इनके दामन में,

महसूस करो दर्द को,

काँटों के चुभ जाने पे.

 

न कोई आस न कोई पास,

बस भूख और प्यास;

तुम समझ सकते हो,

जो गुजरती है ऐसे इंसानों पे.

 

एक नयी सुबह की आस लिए,

दिल में एक बिस्वाश लिए,

ये  फूटपाथों पे सोनेवाले,

जाने क्या गुजरती, इनके जाग जाने पे.                                               

                                          

ये मासूम चेहरे और खामोश निगाहें,

कुछ और ही कहती है  ‘अलीन’,

मत जाओ इनके मुस्कुराने पे.

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