साधना के पथ पर
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यदि आपकी आस्था अंधविश्वासों, आडम्बरों, अपाहिज, बलि प्रथाओं,दहेज़ प्रथाओं, जाति प्रथाओं, ऊँच-नींच, अमीर-गरीब इत्यादि की इजाजत देती है तो मेरी आस्था इसके विरोध का इजाजत देती है। फिर इस बात की शिकायत क्यों कि मैं किसी के आस्था के साथ खिलवाड़ कर रहा हूँ? मेरे विरोध का विरोध क्यों? भाई आपकी तो आस्था विरोध में नहीं बल्कि किसी और में हैं?आप अपनी आस्था निभाओ। आप अपनी आस्था तो कायम रख नहीं पा रहे और मेरी आस्था का अतिक्रमण कर रहे हो। अब आप बताओं यहाँ किसके आस्था के साथ कौन खिलवाड़ कर रहा हैं? यहाँ दोषी मैं हूँ या फिर आप…….अपने सफाई में मैं तो बस इतना ही कहूँगा कि मैं अब भी अपनी आस्था के प्रति आस्थावान हूँ। क्या आप अपनी आस्था………? यदि हाँ तो फिर मुझसे शिकायत क्यों?……
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