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आई पी एल…एक दुर्दशा

Dual Face
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भारत में अभी कौन सा मौसम है? सवाल थोडा मुश्किल हो सकता है क्यूकि दिन में गर्मी है और रात में हलकी ठंड..पर आप सब मुझसे इस बात पर जरूर सहमत होंगे की अभी कोई मौसम हो या नहीं हो पर आई पी एल का मौसम जरूर है. हर समाचारपत्र, टेलीविजन चेंनल और यहाँ तक की हर एक जुबान पर आई पी एल का ही जिक्र है. मैंने प्रायः हर समाचारपत्र पर आई पी एल संबंधी आलेख थोक के भाव से देखे और कुछ एक पढ़े भी. महिमा मंडन जैसे ही था हर एक आलेख. कुछ लोग तो हर मैच का पूरा आँखों देखा हाल पूरे डाटा के साथ आलेख के रूप में लिख कर जागरण जंक्सन पर पोस्ट भी कर रहे है. पढने वाले भी काफी है इसी सब से पता चलता है की हमारे देश में क्या पागलपन है इस क्रिकेट का?
वैसे तो मैं भी क्रिकेट का बड़ा दीवाना रहा हूँ पर मुझे लगता है की अगर बात दीवानगी तक ही रहे तो अच्छा है. मुझे ये कहते बड़ा दुःख हो रहा है की अब ये दीवानगी पागलपन में तब्दील हो चूका है. हाल की एक घटना का उल्लेख करना चाहूँगा. एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय के छात्रावास में टी वी रूम में आई पी एल का एक मैच चल रहा था. जैसा की आप जानते है की आई पी एल में टीमे भारत के विभिन्न विकसित शहरो के नाम पर है, तो ज़ाहिर सी बात है उस दो शहर जिनके बीच मैच हो रहा था वहा के छात्र मैच का लुफ्त उठा रहे थे. कभी इनका पलड़ा भाड़ी तो कभी उनका. बीच बीच में अपने अपने टीमो का मनोबल बढ़ाने को, वो लोग चिल्ला भी रहे थे. कमेंट्री तो सुनाई ही नहीं दे रहा था या यूं कहे किसी की उस कमेंट्री में कोई दिलचस्पी नहीं थी. अचानक ये उनके आपसी शब्द युद्ध में बदल गया और नौबत ये हुई की कुछ लड़के आमने सामने हो गए अपने शहर के लिए. अंत में किसी एक को हारना था. जीतने वाले पक्ष ने अतिउत्साहित हो कर हरने वाले की तरफ अपनी ऊँगली से अभद्र इशारा किया और फिर क्या बात थी भाई साहब ऐसा युद्ध छिड़ा की ४ लड़के घायल हो गए और प्राथमिक चिकित्सा के लिए अस्पताल भेजे गए.
अब सवाल उठता है कि आई पी एल हमे दे क्या रहा है और क्या हमसे छीन रहा है? आई पी एल से हमे जितना फायदा नहीं है उसके १० गुना नुकसान है. मुझे लगता है और मै समझता हूँ कि आप भी इस बात से सहमत होंगे कि आई पी एल क्षेत्रवाद को बढ़ावा दे रहा है अगर ऐसा नहीं होता तो ये छात्र यूं देश की अखंडता को ताख पर रख कर हैवानो की तरह नहीं लड़ पड़ते. मुझे इस घटना ने काफी शर्मसार किया क्यूकी वहा कुछ और देशो के छात्र बेठे थे. जिनके सामने इन्होने एक खेल और अपने क्षेत्र को इतनी महत्ता दे दी कि देश का ख्याल एक बार भी नहीं आया. ऐसी घटना आपने भी कभी न कभी देखी ही होगी. इन घटनाओं में बध्होतरी ही हो रही है. आई पी एल ने हमे ये दिया.
ये जो छात्र थे ये सब अपना क्लास छोड़ कर मैच देख रहे थे. जबसे आई पी एल शुरू हुआ है इन्होने कक्षा कि तरफ मुह ही नहीं किया. भारत के सुनहरे भविष्य का सपना इनके कंधो पर है जो कर्महीनता से खुद ग्रसित है. ये आपलोगों ने भी देखा होगा कि लोग अपना काम छोड़ कर इन मैचो को देखते है और काम भी करते है तो बस दिखावा का. आप खुद अनुमान लगा सकते है कि इस कर्महीनता से मेरा भारत जो हम सबका है कितनी तरक्की कर लेगा?
२० – २० फार्मेट कि तरह ही इस आई पी एल ने चीएर लीडर्स का प्रावधान रखा है जो हर ४ या ६ रन के लिए भड़काऊ नृत्य करती है वो भी अर्धनग्नावस्था में. भारत कि संस्कृति नहीं है ये. हम पाश्चात्य संस्कृति का अनुकरण कर रहे है. पर क्यों? क्या हमारी संस्कृति में अब वो बात नहीं रही या हम में वो बात नहीं रही? निस्संदेह हम में वो बात नहीं रही कही न कही हमारे संस्कृति में ज़हर घोल कर उसे प्रदूषित किया जा रहा है और हम इस आई पी एल कि चकाचोंध में उसे महसूस तक नहीं कर पा रहे है. ये भी आई पी एल ही दे रहा है.
कही भी मैच हो उस स्टेडियम को अगर आप देखे तो कही भी आपको एक भी कुर्सी खाली नहीं दिखाई देगी. पूरा खचाखच भडा मुर्ख भारतीयों से जो अपना काम छोड़ कर उन २२ खिलाडिओं और उन अर्धनग्न विदेशी महिलोओं को देखने जाते है. तरह तरह के पोस्टर, डिस्प्ले दिख जायेंगे पर आपकी आँखे तिरंगा को देखने के लिए संघर्षरत होगी ये मेरा दावा है.
मैंने एक लड़के से पूछा क्यों हर मैच देखते हो काम छोड़ कर? इस पर वो तपाक से बोल पड़ा भाई साहब काम तो फिर कभी हो जायेगा पर ये लाइव मैच फिर कहा से देखने को मिलेगा? महापर्व है ये क्रिकेट का…
मैं ठगा सा बस उसे देखता रह गया और वो फिर मशगूल हो गया उस महापर्व में. आपको याद होगा कि क्रिकेट का महापर्व पहले ४ सालो में एक बार आता था विश्व कप के रूप में… अब तो हर मौसम में ये एक नए रूप में आता है…
मनाते रहिये महापर्व ये ज़ारी है…………… दुर्दशा के आने तक……

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