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“प्यार” आखिर होता क्या है? प्यार का दायरा क्या है? प्यार की शुरुआत कहाँ से होती है? क्या जिस शब्द का पहला अक्षर ही अधूरा है वो क्या किसी इंसान के अधूरेपन को पूरा कर सकता है?
मेरे ख्याल से हम जितने लोगो से पूछे, प्यार के बारे में, हमे प्यार की उतनी नयी परिभाषा मिलेगी. कोई भी परिभाषा न तो पूरी होगी न सही और ना ही गलत पर आप एक बात का अनुमान तो लगा ही सकेंगे की ये इश्वर की इबादत जैसी ही कोई चीज़ है.
कही तो हम ये पढ़ते हुए बड़े हुए की राधा ने कृष्ण में खुदा को देखा और बिना किसी स्वार्थ के उन से प्रेम करती रही. कही तो हम देखते है मीरा ने ज़हर पी लिया श्याम के लिए. इन चीजों से हट कर हमने हीर राँझा और लैला मजनू को भी पढ़ा और जाना. सब में एक चीज़ जो सामान भाव से है वो है प्यार – निःस्वार्थ प्यार.
हम प्यार को अच्छी तरह जान पाए इसमें फिल्मो का भी कम योगदान नहीं है. आज बच्चे बहुत पहले बड़े हो जा रहे है मेरे और आप से ज्यादा प्यार का ज्ञान है उन्हें. हमे फिल्मो को धन्यवाद तो कहना ही होगा.
प्यार का दायरा काफी बड़ा है. हम और आप जहा तक सोच नहीं सकते उस से भी कही ज्यादा बड़ा. ये देश के लिए हो सकता है, माता पिता के लिए हो सकता है या समाज के लिए हो सकता है. पर यहाँ जिस प्यार का उल्लेख मैं करना चाहता हूँ वो यक़ीनन एक पुरुष और महिला का है.
विज्ञान कहता है प्यार एक रिएक्सन है जो शारीर में हारमोंस के असंतुलन से उत्पन्न होता है. हम आज उन हारमोंस की बात नहीं करेंगे.
मुझे याद है लेट नाइन्तिस में जब मैं छोटा था तो अक्सर समाचारपत्रों में पढता था की प्रेमी युगल ने समाज में नहीं स्वीकारे जाने से आत्महत्या कर ली. कभी कभी वो फरार हो जाते थे, शायद उस जगह की तलाश में जहा उन्हें अपने प्यार का सबूत नहीं देना पड़े या जहा उने स्वीकार कर लिया जाये. कहना जरूरी नहीं की प्यार का डगर आसान कभी नहीं होता. आप में से कईयों ने प्यार किया होगा.
आज कल मैं बड़ा हो गया हूँ और फिर से समाचार पत्र पढने लगा हूँ. मैं वही हूँ, समाचारपत्र भी वही है पर खबरे बदल गयी है. हर क्षेत्र में बदलाव आया है पर एक बदलाव जो देख कर मैं कई बार दुखी हुआ कभी कभी कुछ इस क़द्र की आसू ने अपना बना ही लिया मेरी आँखों को.
पहले प्रेमी साथ जीने और मरने की कसम खाते थे और कुछ उनमे से मरते भी साथ साथ ही थे पर आज कसम तो वही है पर कथनी और करनी में अंतर काफी है.
आज कल आधुनिक युग है. हर कोई खुद को मोडर्न दिखाना चाहता है. फिल्मो का तो प्रभाव है ही काफी आज भी. स्क्रीन पर हीरो हेरोइन को चुम्बन लेते देख फिर से होरमोन का असंतुलन होना स्वाभिक है. प्यार में चुम्बन कोई नयी बात नहीं होगी कभी भी पर आज कल प्रेमी उन्हें मोबाइल में केद कर के एक यादगार लम्हा की तरह संजो कर रखना चाहते है. सारी समस्या यही से शुरु होती है. जो प्यार में एक खुबसूरत लम्हा है उसे आप केद करना चाहते है, करते है और फिर किसी भी कारन से प्यार में असंतोष होते ही उस अतिव्याक्तिगत संवेदनशील लम्हा को सार्वजानिक कर देते है.
लड़के प्रायः कसूरवार होते है इन चीजों के. पर भुगतना लड़किओं को पड़ता है. यही एक बड़ा बदलाव दिख रहा है मुझे समाचारपत्रों में. प्रेमी ने एम् एम् एस नेट पर की सार्वजनिक और पीड़ित लड़की ने खुदखुशी की.
खुदखुशी करना कितना ठीक और तर्कसंगत है इस पर कोई बहस नहीं करूँगा बस ये कहना चाहता हु की खुदखुशी समाधान नहीं है. लड़की के परिवार वालो पर क्या गुजरती है इसका एहसास अगर लड़की एक बार भी कर ले तो यूं प्यार में अँधा हो कर दिमाग ताखे पर रख कर ऐसा कदम नहीं उठाएगी जो उसके और उसके परिवार के हित में न हो. लड़कियों में जो पाश्चात्य संस्कृति का अनुसरण करने का दौड़ आ गया है वो सच मानिये तो समाज के विघटन का एक कारन है.
प्यार हमारी संस्कृति है, हमने प्यार सिखाया लोगो को पर इसका बाजारीकरण बंद कीजिए नहीं तो जो वक़्त आने वाला है प्यार का नाम शब्दकोषो से मिट जायेगा और हर कही सिर्फ वासना लिखा होगा. वक़्त है दिमाग से सोच कर कदम उठाने की, अच्छा वातावरण बनाने की जिस में आप गर्व से अपने बच्चो का पालन पोषण कर पायें.प्यार जिनसे उनकी उतपत्ति हुई है उन्ही से उनको सिचने की. पहल लड़कियों की तरफ से होगी क्युकी समाज उनकी पल्लुओं पर टिका है.
हर कोई आज इस नए प्यार को देख कर शर्मशार है और खुद से पूछ रहे है “क्या यही प्यार है?”
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