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तुम्हारा ही तो प्यार हुं

मेरी लेखनी :मेरा परिचय
मेरी लेखनी :मेरा परिचय
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जीवन का प्रथम एहसास हुं,पहला दुलार हुं
रक्षका हुं,बचपने की मीठी तकरार हुं
कामिनी हुं, लाल जोङे का श्रृंगार हुं
ऐ नर,तुम्हारा ही तो कहना है “ममतामयी” नार हुं
शीतल जल हुं,ठंढी बयार हुं
प्यार देती हुं,तुम्हारा प्यार हुं
परिपक्वता से पुर्ण हुं,मौसम का सार हुं
ऐ नर,तुम्हारा ही तो कहना है ‘मनमोहती” नार हुं
कलावती हुं,कविताओं का आधार हुं
रागिनी हुं,वाणी में तलवार की धार हुं
चंचलता भरी मुझमें,हंसू तो बहार हुं
ऐ नर,तुम्हारा ही तो कहना है “निखरती” नार हुं
हिरणी सी चाल हैं,घुंघराले बाल हैं
कपोलों की लाली सबसे बेमिसाल है
जीवन से भरी आंखे मेरी,रसों की जार हुं
ऐ नर,तुम्हारा ही तो कहना है “मदमाती” नार हुं
इतनी उपाधियों से नवाज कर प्रताङित करते हो
चंद पैसों की खातिर अग्नि में जारित करते हो
हर अत्याचार ,दुराचार मुझपर कर डालते हो
कोख में मिटा मुझे कहते हो धरती पर भार हुं
ऐ नर,मत भूलना कभी, मैं ही अबला,चंडी,और “धधकती” नार हुं
मत बनाओ पुजा का सामान मुझे,नित नए नाम ना दो
मत करो बङाई मेरी,उजली धूप चाहिए,अंधेरी शाम ना दो
बस दिल से अपना लो मेरी अस्मिता,मेरे अस्तित्व को
मैं तो तुम्हारी पुरक ,तुम्हारी छाया,तुम्हारा ही हथियार हुं
ऐ नर,बहुत बलवती हुं मैं,सबकुछ हासिल मुझे, तुम्हारा “वंशाधार” हुं
हर रुप में हुं,वेश में हुं, तुम्हारे जीवन के उद्देश्य में हुं
तुम्हारे कल में थी,आज में हुं,कल में भी रहुंगी
तुम्हारे लिए लङी थी यम से,तुम्हारे दुखों से भी लङूंगी
मैं ही तुम्हारी इज्जत,तुम्हारा मान,तुम्हारा घर-बार हुं
ऐ नर,तुम्हारेलिए ही धरा पर लाई गई “ऊपरवाले का इक उपहार” हुं
कब समझोगे मुझे,हर रुप में “तुम्हारा ही तो प्यार हुं”

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