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बहुजन समाज पार्टी, यानी बसपा की सुप्रीमो मायावती ने सैकड़ों नहीं बल्कि हज़ारों बार अखिलेश सरकार पर निशाना साधा होगा और दिलचस्प बात यह है कि हर बार वह प्रदेश सरकार की ‘कानून-व्यवस्था’ और ‘सपा की गुंडई’ की बात जरूर कहती हैं. इस सन्दर्भ में अभी उनकी पार्टी द्वारा किसी की बहन-बेटियों की इज्जत को जिस प्रकार सरेआम उछाला गया और जिस प्रकार उनकी पार्टी के नेता बढ़-चढ़कर गुंडई करते नज़र आये, उससे साफ़ हो गया है कि अगर वह सत्ता में आईं तो किस प्रकार की ‘कानून-व्यवस्था’ दुरुस्त होगी. इस पूरे विवाद की खबर आप सब तक पहुँच ही गयी होगी कि कैसे एक भाजपा नेता दयाशंकर ने मायावती पर टिकट-बेचने की तुलना एक ‘वेश्या’ से कर दी. इस प्रकरण की खूब निंदा हुई, किन्तु भाजपा नेताओं की बदजुबानी तो सामने आ ही चुकी थी. खैर, वह नेता पार्टी से बाहर किया गया किन्तु अब बारी बहुजन समाज पार्टी की थी. उसकी सर्वोच्च नेता मायावती पहले तो राज्यसभा में बयान देती हैं कि ‘दयाशंकर ने जो कुछ कहा है, वह अपनी बहन-बेटियों के लिए (BSP BJP Abuse Episode, UP Politics) ही कहा होगा’! समझा जा सकता है कि मायावती की बढ़ती उम्र के साथ उनके दिमाग की बत्ती भी गुल हो गयी है, किन्तु इसके बाद तो उनकी पूरी पार्टी ने ‘गुंडई’ और ‘गाली-गलौच’ की नयी परिभाषा ही गढ़ दी.
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इसी पार्टी के एक दूसरे बड़े नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी की मौजूदगी में अगर एक 12 साल की बच्ची को ‘पेश’ करने का नारा खुलेआम लगाया जाए तो समझा जा सकता है कि इस पार्टी के ‘डीएनए’ में नारी-जाति का सम्मान और कानून-व्यवस्था के सम्मान का स्तर कितना गिर चुका है. 12 साल की उस मासूम बच्ची ने बसपा नेताओं को तमाचा मारते हुए पूछ ही लिया कि ‘नसीम अंकल, बताइये मुझे कहाँ पेश होना है?’
छी…, शर्म से डूब जाना चाहिए बसपा नेताओं को !!
अरे भाजपा के तो किसी एक नेता ने बदजुबानी की, पर यहाँ तो पूरी की पूरी बसपा ही लग गयी. कोई दयाशंकर की जीभ काटने पर 50 लाख का इनाम घोषित कर बैठा तो कोई उसकी बहन, माँ और पत्नी को ही गाली देने लगा, वह भी टेलीविजन के सामने! जब मायावती से पत्रकारों ने उनकी पार्टी नेताओं की बदजुबानी के बारे में पूछा तो उन्होंने और भी शर्मनाक बयान दिया और कहा कि ‘दयाशंकर के निरपराध बहन-बेटियों की बेइज्जती उसे सबक सिखलाने के लिए किया गया था.’ शाबाश! बहनजी सबक अगर आप और आपके कार्यकर्त्ता ही सिखाने लगें तो फिर कानून-व्यवस्था, कानून-व्यवस्था चिल्लाती क्यों रहती हैं. सच तो यही है कि पूरे प्रदेश और देश के सामने यह बात सामने आ चुकी है कि कानून-व्यवस्था के नाम पर दूसरों को बदनाम करने वाली मायावती जी की पार्टी के मन में कानून के प्रति कोई सम्मान नहीं है.
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उस निरपराध पत्नी ने भी मायावती को कड़ा जवाब दिया और कहा कि ‘क्या सबक सिखाने के लिए मायावती और उनकी पार्टी के लोग किसी मासूम की जान भी ले लेंगे’? अब यहाँ भाजपा और उसके नेताओं की सुन लीजिए ज़रा. चलो! दयाशंकर के बयान पर भाजपा ने उस बदजुबान नेता को 24 घंटे के भीतर निकाल दिया… ठीक किया !!! किन्तु, जब उसकी बेटी और पत्नी को पूरी बसपा गाली दे रही थी, तब क्या भाजपा का यह फ़र्ज़ नहीं था कि उसके समर्थन में खड़ी होती? उसके केंद्रीय नेताओं की जुबां पर फिर ताला क्यों लग गया और मोदीजी तो इसी समय गोरखपुर में ही भाषणबाजी भी कर रहे थे. जाहिर है, ‘यूज एंड थ्रो’ … की पॉलिसी भाजपा ने अपनाई. बाद में शायद इस पार्टी के नेताओं ने ‘बहन-बेटियों’ के सम्मान के लिए (BSP BJP Abuse Episode, UP Politics) पूरे प्रदेश में प्रदर्शन करने का निर्णय लिया. जाहिर है, जब मामला हाइलाइटेड हुआ तो भाजपा ने ‘वोट-बैंक’ की पॉलिटिक्स शुरू कर दी. अरे, अब आप क्या सम्मान दोगे उस निरपराध बेटी, माँ और पत्नी को. उसने तो सच्चाई के पक्ष में खुद खड़े होकर अपनी आवाज उठाई. यहाँ अखिलेश सरकार की जरूर तारीफ़ करनी होगी कि जब दयाशंकर ने बदजुबानी की तो उसके खिलाफ पुलिस तत्परता से खोजबीन में जुट गयी, जिससे डरकर वह शायद बिहार भाग गया. और यही प्रशासन, उस निर्दोष नारी-शक्ति, बेटी, माँ और पत्नी के साथ भी खड़ा रहा, जब उस पर बसपाइयों ने हमला करने की कोशिश की. तत्काल, इनके निवास पर पुलिस की सख्त ड्यूटी लगाई गयी तो दयाशंकर की माँ के कम्प्लेन पर मायावती और बसपा के बड़े नेताओं के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कर लिया गया.
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इस मामले में सपा नेताओं ने कोई अनर्गल फायदा उठाने के लिए कहीं भी बयानबाजी नहीं की, जिसके लिए उनकी तारीफ़ की जानी चाहिए. जाहिर है, अखिलेश यादव ने इस पूरे मामले को परिपक्वता और कानून-व्यवस्था के अनुसार डील किया. और इसीलिए, अगर प्रदेश की जनता बसपा-भाजपा के गाली-गलौच के बीच अखिलेश की वापसी करा दे, तो आश्चर्य नहीं किया जाना चाहिए. वैसे, भी पिछले दिनों बड़े अख़बार अमर उजाला के सर्वे में अखिलेश सरकार को सभी पार्टियों से काफी आगे दिखाया गया है. इस विवाद से कुछ ही दिनों पहले समाजवादी पार्टी में जब आपराधिक छवि के बाहुबली नेता मुख्तार अंसारी से सम्बंधित पार्टी कौमी एकता दल को शामिल करने का निर्णय लिया गया तो अखिलेश सरकार पर खूब प्रश्न उठे. हालाँकि, यह निर्णय अखिलेश को विश्वास में लेकर नहीं लिया गया था और जब उन्हें जानकारी मिली तब ताकतवर नेता और उनके चाचा शिवपाल यादव सहित सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव को अखिलेश ने इस बात के लिए मजबूर कर दिया कि वह ‘मुख्तार अंसारी’ जैसों की अपनी पार्टी से कतई नजदीकी नहीं चाहते हैं. अंत में अखिलेश की ही चली और कौमी एकता दल का सपा में विलय रद्द कर दिया गया. इसी मुद्दे पर प्रदेश की जनता खुलकर अखिलेश के साथ दिखी और अमर उजाला के ऑनलाइन पोल में जब जनता से सवाल पूछा गया कि क्या छूट मिलने पर मुख्यमंत्री के रूप में और बेहतर कर सकते थे अखिलेश यादव?
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इस पोल में कुल 2255 लोगों ने भाग लिया था, जिसमें आधे से ज्यादा लोगों का मानना था कि मुख्यमंत्री के रूप में पार्टी और आलाकमान से और छूट मिलने पर अखिलेश बेहतर परिणाम (BSP BJP Abuse Episode, UP Politics, Akhilesh Yadav) दे सकते थे. कुल 1131 लोगों ने इसके पक्ष में राय दी और फीसदी के हिसाब से यह आंकड़ा रहा 50.16 प्रतिशत का. हालाँकि, इसके विरोध में वोट करने वालों की संख्या भी अच्छी खास रही. लगभग 1023 लोगों यानि 45.37 प्रतिशत ने माना कि अगर अखिलेश को छूट मिलती तब भी वह इसी तरह काम करते. इसी कड़ी में, तीसरे विकल्प यानि कुछ नहीं कह सकते के पक्ष में मात्र 4.47 फीसदी ने ही वोट दिया. साफ है कि हालिया प्रकरण ‘भाजपा और बसपा’ के गाली-गलौच एपिसोड के बाद जनता का झुकाव मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पक्ष में और बढ़ेगा ही.
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राजनीति समझने वाले लोग जानते हैं कि किस प्रकार सपा में अखिलेश पहले अनुभव विहीन थे, जबकि जैसे-जैसे वह परिपक्व हुए हैं, उनके राजनीतिक फैसलों में दृढ़ता दिखाई देने लगी है. विकास के मापदंड पर तो खैर, तमाम वैश्विक संस्थाएं उनकी तारीफ़ कर ही चुकी हैं. आने वाले दिनों में देखना दिलचस्प होगा कि अपना नकाब उतरने के बाद बीजेपी और मायावती की बहुजन समाज पार्टी आखिर किन मुद्दों पर यूपी की जनता से वोट मांगने जाति हैं, क्योंकि ‘गाली-गलौच’ एपिसोड ने उनके चेहरे से नैतिकता और ‘कानून-व्यवस्था’ के सम्मान का झूठा लबादा उतार दिया है.
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