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ट्रंप की जीत के मायने, ‘अमेरिका-भारत-रूस’ का त्रिकोण संभव!

Mithilesh's Pen
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दुनिया भर में तमाम बदलाव हो रहे हैं एवं लोगों की मानसिकता भी उसी अनुपात में बदल रही है. कहा गया है कि ‘परिवर्तन संसार का नियम है’ और इस बात को श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने सविस्तार समझाया है. डोनाल्ड ट्रंप को पिछले 1 साल से हमने, आप ने खूब सुना है. हालांकि यह नाम उससे पहले भी रियल एस्टेट की दुनिया में बेहद प्रचलित रहा है, किंतु जिस तरह उनका नाम अमेरिकी चुनाव के विवादित प्रत्याशी के रूप में सामने आया, वह और भी दिलचस्प रहा. क्या अमेरिकन मीडिया, क्या यूरोपीय मीडिया, क्या चाइनीस मीडिया, सभी ने डोनाल्ड ट्रंप को भरपूर कवरेज दिया. भारतीय मीडिया ने तो हमारे पीएम नरेंद्र मोदी की तुलना ही डोनाल्ड ट्रंप से कर डाली, तो कई समूह डोनाल्ड ट्रंप की जीत की खातिर यज्ञ करते देखे गए, तो कईयों ने उनकी जीत के लिए मन्नतें मांगी और मिठाइयां तक बांटी. हालाँकि, किसी भी प्रत्याशी की जीत में कई कारक होते हैं, पर डोनाल्ड ट्रंप की जीत में जो कारक सर्वाधिक महत्वपूर्ण है वह है, अमेरिका सहित पूरे विश्व में फैले धार्मिक आतंकवाद पर सख्त रुख अख्तियार करना! और उसके बारे में पब्लिकली बोलने से बिल्कुल भी नहीं हिचकना! अगर यह बात कही जाए कि आज की दुनिया में दुनिया की अधिकांश आबादी इस्लामिक आतंकवाद के कारण खौफ के साए में है, तो इस बात में ज़रा भी अतिशयोक्ति नहीं होगी. खुद मुसलमानों की ही एक बड़ी आबादी इस्लामिक आतंकवाद के विरुद्ध है, किंतु जाने क्यूं इस्लामिक जगत एकजुट होकर धार्मिक आतंकवाद की निंदा नहीं कर पाता है. बल्कि यह कहा जाए तो ज्यादा उचित होगा कि आतंकवाद की निंदा के नाम पर इस्लामिक जगत खानापूर्ति ही करता और कई बार उनसे अनावश्यक सहानुभूति का प्रदर्शन भी करता है. ऐसे में पूरे विश्व में आतंकवाद की जड़ें फैल चुकी हैं और दुर्भाग्य से 99.99 फीसदी आतंकवादी इस्लाम को मानने वाले ही रहे हैं. Donald Trump, US President, Hindi Article, New, Terrorism, India, Russia, America Relations, Foreign Policy, Editorial, Election Analysis

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स्वाभाविक रूप से लोगबाग डरे हुए हैं कि कहीं किसी आतंकी विस्फोट में उनकी जान न चली जाए, कहीं प्लेन को इस्लामिक आतंकवादी किडनैप न कर लें, कहीं उनके परिवार का कोई सदस्य आतंकवादियों का बंधक न बन जाए इत्यादि! अब यह बात समझना बेहद आसान है कि इस डर से कड़ाई से निपटने की बात कहने वाला भला क्यों लोकप्रिय नहीं होगा? यह बात अलग है कि इस्लामिक आतंकवाद की जड़ में खुद बड़े देशों द्वारा अपनाई गई रणनीति/ कूटनीति भी काफी हद तक जिम्मेदार है. हथियारों की खपत करने के लिए रूस और अमेरिका जैसे बड़े देशों ने बड़े लंबे चौड़े खेलों की रचना की है. यहां तक की ओसामा बिन लादेन जैसों को भी अमेरिका ने ही खड़ा किया और बाद में बेकाबू हो जाने पर उसे नेस्तनाबूत करने के नाम पर इस्लाम को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. उसके नाम पर अफगानिस्तान में लंबा-चौड़ा युद्ध लड़ा गया, इराक जैसे देशों में भी बहाने-बहाने से हमला किया गया. खैर, वैश्विक राजनीति का यह एक अलग मुद्दा है, किंतु आज की सच्चाई यही है कि इस्लामिक रुढ़िवादिता ने आग में घी का काम किया है और धार्मिक आतंकवाद फैलने के पीछे 80 फीसदी से अधिक इस्लामिक कट्टरवाद ही जिम्मेदार है. लोगों को मारकर ज़िहाद करना और जन्नत में 72 हूरें मिलने का जो ब्रेनवाश इस्लाम को मानने वाले युवाओं का किया जाता है, उसने अमेरिका सहित दुनिया भर में खौफ मचाया हुआ है. अमेरिकी हवाई अड्डों पर जिस तरह खास समुदाय के लोग पटक-पटक कर चेक किए जाते हैं, उसे अमेरिकन के मन में खास धर्म के बारे में सोच परिलक्षित होती है. वस्तुतः नाइन इलेवन (9/11) के आतंकी हमले के बाद अमेरिका हमेशा सशंकित रहा है कि उसके नागरिक आतंकी हमले के शिकार न बन जाएँ! वहां के नागरिक भी किसी दाढ़ी रखे व्यक्ति को देखकर डर जाते हैं तो अगर कोई ‘अल्लाह’ का नाम ज़ोर से चिल्ला दे, उसके सुसाइड बॉम्बर होने का खतरा फ़ैल जाता है. डर का यह एक तथ्यात्मक सच है, जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता. Donald Trump, US President, Hindi Article, New, Terrorism, India, Russia, America Relations, Foreign Policy, Editorial, Election Analysis

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डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकन के इस डर को अपना चुनावी हथियार बना लिया और आखिर तक इस मुद्दे पर उन्होंने अपना स्टैंड साफ रखा. हालांकि, उनकी जीत में हिलेरी क्लिंटन की कमजोर दावेदारी, एंटी-इनकंबेंसी का कुछ फैक्टर, अर्थव्यवस्था पर अमेरिका की कमजोरी, मेक्सिको से आने वाले लोग, अमेरिका में नौकरियों का कम होना इत्यादि भी कुछ कारक रहे हैं, पर सबसे बड़ा मुद्दा निश्चित रूप से धार्मिक आतंकवाद का ही रहा है. 9/11 के बाद से अब तक अमेरिकी इस्लामिक आतंकवाद से खासे डरे हुए हैं और ओबामा प्रशासन द्वारा लादेन को मारे जाने के बावजूद, उन्हें ट्रम्प ज्यादा बोल्ड और विश्वसनीय लगे. अब अमेरिका का नया राष्ट्रपति तय हो चुका है, तो क्या उम्मीद की जानी चाहिए कि अपने बारे में फैली तमाम आशंकाओं/ कुशंकाओं को डोनाल्ड ट्रंप गलत साबित कर सकेंगे? जीत के बाद अपने पहले भाषण में डोनाल्ड ट्रंप में इसकी झलक भी दिखाई जब उन्होंने कहा कि वह हर एक अमेरिकन के राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने वोट दिया अथवा नहीं दिया. उनकी इन बातों की तारीफ़ राष्ट्रपति ओबामा ने भी किया है और भविष्य के प्रति आशा जाहिर की है. निश्चित तौर पर जीत हासिल करने के बाद वाला ट्रंप, विवादित चुनाव प्रचार करने वाले ट्रंप से काफी अलहदा हो सकता है. हालाँकि, वैश्विक राजनीति की गुढ़ता समझने में डोनाल्ड ट्रंप को काफी समय लग सकता है, किंतु उनकी बुद्धि तीक्ष्ण है और वह बोल्ड हैं तो यह सारा अनुभव अपेक्षाकृत जल्दी हासिल कर सकेंगे. Donald Trump, US President, Hindi Article, New, Terrorism, India, Russia, America Relations, Foreign Policy, Editorial, Election Analysis

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एक और बात यह है कि अमेरिकन राष्ट्रपति को रूस पसंद करें और अमेरिकन राष्ट्रपति की चुनावी जीत पर रूस की संसद में तालियां बजें, यह काफी अलग दृश्य है. ट्रंप को कई लोग भारत के भी बेहद करीब बता रहे हैं तो क्या आने वाले दिनों में भारत-रूस-अमेरिका का कोई सक्रीय त्रिकोण बन सकता है. भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी ने उनको जीत की बधाई देने के साथ-साथ, इस बात के प्रति भी आभार जताया है कि डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत के बारे में काफी सकारात्मक बातें कही हैं. रूसी राष्ट्रपति के साथ भी ट्रम्प के सम्बन्ध सहज हो सकते हैं. ऐसे में, है तो यह कल्पना ही, किंतु अगर महाशक्तियां आपस में सहयोग के साथ चलने पर राजी हो जाएँ, तो बहुत सारे मुद्दों पर विश्व के तमाम देशों का टकराव टाला जा सकेगा. भारत के लिए यह स्थिति सर्वाधिक मुफीद होगी, क्योंकि रूस उसका पुराना दोस्त रहा है तो अमेरिका से नयी दोस्ती प्रगाढ़ता की ओर बढ़ती जा रही है. देखना दिलचस्प होगा कि डोनाल्ड ट्रंप इस मामले में कितनी दूरी तय कर पाते हैं, क्योंकि अमेरिका का वर्चस्व और तमाम वैश्विक मामलों की सुलझन डोनाल्ड ट्रम्प की सोच के रास्ते से होकर गुजरने वाली है.

मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.

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