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वर्तमान शिक्षा का उद्देश्य परिभाषित हो

Mithilesh's Pen
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कि नर्सरी में पढ़ने वाले मेरे चार साल के बेटे के स्कूल में चित्रकारी का कॉम्पिटिशन है. वैक्स पेन्सिल बॉक्स की ओर देखा तो उसकी पैकिंग थोड़ी खास लगी, जिसकी कीमत भी ज्यादा थी. मैंने कहा कि कोई सस्ता ले लिया होता, आखिर बच्चा इसे भी तोड़ कर फेंक ही देगा तो पत्नी ने मुझे बताया कि यह कॉम्पिटिशन बच्चों स्टेशनरी इत्यादि बनाने वाली किसी खास कंपनी ने प्रायोजित किया था और उनका खास प्रोडक्ट खरीदने पर एक नेम-स्लिप मिलती थी, जिसे ड्राइंग पेपर पर चिपकाने पर ही
वह ड्राइंग कॉम्पिटिशन में स्वीकृत होगी. अपनी खोजी प्रवृत्ति के अनुसार मैंने इस मामले में थोड़ी रुचि ली तो पता चला कि जिन बच्चों को ठीक से अल्फाबेट याद नहीं हैं, उनके गार्जियंस ने बाकायदे प्रोफेशनल पेंटिंग बनाकर प्रस्तुत किया है. मेरी धर्मपत्नी भी चित्रकारी में रुचि रखती हैं, मगर उस चार साल के बच्चे के लिए कई चार्ट पेपर ख़राब करने के बाद उन्होंने मुझसे बाहर से प्रोजेक्ट बनवाकर लाने को कहा तो मेरा क्रोध फट पड़ा और जब मैंने दुसरे गार्जियंस से इस सम्बन्ध में बात की तो पता चला, सब मुझसे भी ज्यादा परेशान हैं. खैर, इस मुद्दे को तमाम दुसरे मुद्दों की तरह मैंने लो-प्रोफाइल ही रखा, क्योंकि बच्चे की शिक्षा का सवाल जो है. इन दुसरे मुद्दों में,Education reformation needed, up high court decision, hindi article, public school children character जिनसे प्राइवेट स्कूलों के गार्जियन दो-चार होते हैं वह डोनेशन, पिकनिक – प्रोजेक्ट और एनुअल इत्यादि नाम से अवैध वसूली, प्राइवेट कंपनियों की प्रोडक्ट सेलिंग जिनमें ड्रेस, किताब से लेकर दूसरी चीजें शामिल होती हैं. कुछ प्राइवेट स्कूलों की फीस और मेंटिनेंस खर्च चार पांच हज़ार महीने से लेकर दस बारह हजार और इससे भी आगे बढ़ जाते हैं. थोड़ा असामाजिक होकर सोचा जाय तो यहाँ तक भी ठीक है, मगर असल समस्या तब सामने आती है जब इतने जतन करने के बाद हम इन बच्चों की तरफ गौर करते हैं. शिक्षा के संदर्भ में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का मानना था कि वास्तविक शिक्षा वह है जिससे व्यक्ति के चरित्र का निर्माण हो, मगर प्राइवेट स्कूल से निकले इन छात्रों में चरित्र के नाम पर घोर असुरक्षा, असामाजिकता, मनोवैज्ञानिक समस्याएं और ड्रग्स इत्यादि सेवन के मामले भी लगातार पाये गए हैं. यह बात दावे के साथ कही जा सकती है कि प्राइवेट स्कूल से निकलने वाले छात्रों का एक बड़ा प्रतिशत अपने माता-पिता, भाइयों और परिवार के साथ आस-पड़ोस के प्रति असंवेदनशील होता जा रहा है. चलिए, इस चरित्र को हम एक क्षण के लिए किनारे रख देते हैं, तो शिक्षा के अघोषित उद्देश्य के रूप में पैसे कमाने के उद्देश्य को ही ले लेते हैं. देश के बड़े संस्थानों से निकलने वाले इंजिनियर, प्रबंधन के विद्यार्थी, बीएड, जनरलिज्म इत्यादि के स्टूडेंट्स ग्रेजुएट और पोस्ट-ग्रेजुएट करने के बाद भी एक साधारण नौकरी के लिए धक्के खा रहे हैं. आधुनिकता के इस युग में अब कोई यह न कहे कि सरकार नौकरी नहीं दे पा रही है तो युवा क्या कर सकते हैं. यह छात्र, जिनके ऊपर एक बड़ी पूँजी और गार्जियंस का बड़ा टाइम इन्वेस्ट हुआ रहता है, क्या उनकी आर्थिक आत्मनिर्भरता से सम्बंधित प्रश्नों के लिए इन प्राइवेट स्कूलों को जिम्मेवार नहींEducation reformation needed, up high court decision, hindi article, rss mohan bhagwat ठहराया जाना चाहिए? प्रोजेक्ट और एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज के नाम पर देश के नागरिकों की सेविंग का मोटा हिस्सा खर्च कराकर भी उद्यमिता का बीज डालने की जिम्मेवारी आखिर किसकी है? प्राइवेट स्कूलों की इतनी लम्बी भूमिका मैंने इसलिए लिखी, क्योंकि सरकारी स्कूलों की भूमिका हम सबको पहले से ही पता है. इस सन्दर्भ में, पिछले दिनों इलाहाबाद हाई कोर्ट का एक निर्णय बड़ी तेजी से चर्चा में आया है. हालाँकि, इस निर्णय के लागू होने में नामुमकिन की हद तक किन्तु-परन्तु हैं, मगर इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता है कि इस निर्णय से न केवल आम लोगों में ख़ुशी की एक लहर दौड़ी है, बल्कि शिक्षा व्यवस्था पर पुनर्विचार का एक सार्थक मौका भी हाथ आया हुआ है. यहाँ उद्धृत करना उचित रहेगा कि शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाने की नियत से सुल्तानपुर के शिक्षक शिव कुमार को सरकारी नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया है, मगर उनका साहसिक प्रयास Education reformation needed, up high court decision, hindi article, modi, smriti irani, president of Indiaकतई बेकार नहीं गया है और मशाल न सही, एक दीपक जलाने का कार्य अवश्य ही हुआ है. अब इस दीपक में बाती और तेल डालने का कार्य उन समस्त सुधीजनों की अनवरत जिम्मेदारी है, जो इस राष्ट्र को अपना समझते हैं और खुद के साथ अपनी आने वाली पीढ़ी को भी सामर्थ्यवान बनाना चाहते हैं. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने तात्कालिक रूप से इस फैसले को लागू करने के लिए कहा है और एक कमिटी का गठन करने का आश्वासन दिया है, मगर इसके विपरीत आवाज उठाने वाले शिक्षक की बर्खास्तगी राज्य सरकार की मंशा भी साफ़ कर रही है. हालाँकि, इस फैसले से उत्पन्न चर्चा को कई लोग आगे भी बढ़ा रहे हैं, जिनमें सामाजिक कार्यकर्त्ता और वकील डॉ. नूतन ठाकुर भी हैं, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल करके उत्तर प्रदेश हाई कोर्ट के फैसले को सरकार द्वारा लागू कराने की मंशा जताई है. खैर, लोग इस बारे में अपना अपना रूख रख रहे हैं, जो काफी हद तक सकारात्मक माना जा सकता है और इस बात की तस्दीक Education reformation needed, up high court decision, hindi article, government schools in Indiaकरता है कि लोग अगर सरकारी स्कूलों से संतुष्ट नहीं हैं तो प्राइवेट स्कूलों से भी बिलकुल संतुष्ट नहीं हैं, मगर मजबूरी का नाम महात्मा गांधी और अंधों में काना राजा जैसी उक्तियाँ आम जनों के पर क़तर देती है. शायद इसीलिए, इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले पर आम ख़ास सभी रुचिपूर्वक बातें कर के आशा की राह खोजने में लगे हुए हैं, मगर इस चर्चा को मुकाम तक पहुंचाने की ज़हमत कौन उठाएगा, यह मूल प्रश्न है. क्योंकि, इस चर्चा को वगैर कोई दिशा दिये यह जल्द ही अपना दम तोड़ देगी. क्या इसके लिए मजबूत सामाजिक संगठनों, राजनीतिक पार्टियों और प्राइवेट स्कूलों की मजबूत लॉबी के मद्देनजर कोई सार्थक हल निकालने के लिए आंदोलन खड़ा किया जाना चाहिए या फिर यह मुद्दा अख़बारों की न्यूज और सम्पादकीय बन कर ही रह जायेगा! आखिर, आरक्षण के लिए गुजरात के हार्दिक पटेल समेत देश भर में जिस प्रकार से दिन और हफ्ते भर में ही बड़े आंदोलन खड़े हो जा रहे हैं तो शिक्षा व्यवस्था में सुधार पर आंदोलन क्यों नहीं खड़े किये जा सकते हैं? क्या इस बात में कोई किन्तु परन्तु है कि सरकारी स्कूल एक तरह से यतीमखाना बन कर रह गए हैं, जिसके अध्यापक जीवन भर वगैर किसी ठोस आउटपुट के तनख्वाह उठाते हैं तो उसमें जाने वाले बच्चे मिड-डे मील और चावल आटा लेने भर जाते हैं, वहीँ दूसरी ओर प्राइवेट स्कूलों का जाल सिर्फ मुनाफाखोरी का संगठित बिजनेस बन कर रह गया है और दोनों ही तरह के स्कूल चरित्र और आर्थिक आत्मनिर्भरता के पैमाने पर बुरी तरह फेल हो रहे हैं. ऐसी स्थिति में अगर सामाजिक आंदोलन का एक बड़ा झोंका नहीं आया तो इलाहाबाद हाई कोर्ट का निर्णय अर्थहीन ही जायेगा और समाज शिक्षा व्यवस्था में सुधार का एक सुनहरा Education reformation needed, up high court decision, hindi article, lord macaulayमौका हाथ से गँवा देगा. रोचक बात तो यहाँ है कि भारत को फिर से विश्वगुरु बनाने का ख्वाब देखने, दिखाने वाले और मैकाले की शिक्षा-पद्धति को पानी पी-पीकर कोसने वाले अब पूरी ताकत से सत्ता पर काबिज हैं और लगातार उनकी ताकत हर ओर बढ़ती जा रही है, मगर अफ़सोस यही है कि अब तक वर्तमान शिक्षा के उद्देश्य को परिभाषित करने की जरूरत भी नहीं समझी गयी है. ऐसे में केंद्र सरकार द्वारा स्किल इंडिया, डिजिटल इंडिया, क्लीन इंडिया जैसे प्रोग्राम कैसे और कब तक सफलता की ओर बाद सकेंगे, क्योंकि सबकी नींव तो शिक्षा ही है, इसलिए हाई कोर्ट के निर्णय को एक प्रदेश से सम्बंधित मानकर अनदेखा करना देश की सबसे बड़ी समस्या को अनदेखा करना होगा. केंद्र सरकार समेत सभी राज्य सरकारों को इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को आधार बनाकर सरकारी स्कूलों के साथ-साथ प्राइवेट स्कूलों को जिम्मेदार, उत्पादक, चरित्र-निर्माण की संस्था बनाना निश्चित रूप से सरकार की जिम्मेवारी है. अगर बच्चे बारहवीं तक भी ठीक पद्धति से शिक्षित हो गए तो वह क्लीन, डिजिटल और स्किल्ड तो खुद-बखुद हो जायेंगे.

– मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.

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