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कबड्डी, कबड्डी, कबड्डी …. विश्व कप भारत की झोली में !!

Mithilesh's Pen
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भारत में क्रिकेट को लेकर जो दीवानगी रही है, निश्चित रूप से खेलों को उससे बढ़ावा मिला है. बल्कि ‘खेलोगे कूदोगे बनोगे खराब’ की परिभाषा को बदलने का श्रेय क्रिकेट को दिया जा सकता है, किन्तु यह खेल किसी बरगद के पेड़ की तरह मजबूत होता चला गया, जबकि इसके ग्लैमर और प्रभाव के चलते भारत में अन्य खेलों को नुकसान भी उठाना पड़ा. खासकर क्रिकेट में जब से प्रोफेशनली ‘आईपीएल’ शुरु हुआ तब से क्रिकेट के खिलाड़ी, उसके स्पांसर एवं उससे जुड़े अन्य लोग तेजी से आगे बढ़े और दूसरे खेल एवं खिलाड़ियों में कहीं ना कहीं एक हीन भावना सी आने लगी. इस सम्बन्ध में कई नकारात्मक चर्चाएं शुरू होतीं, उससे पहले ही दूसरे खेलों ने क्रिकेट की लोकप्रियता के बावजूद आगे बढ़ने का बीड़ा उठा लिया. देखा जाए तो क्रिकेट के बाद जो खेल हमारे देश में प्रोफेशनली अपनी जड़ जमा रहा है उनमें जो नाम सबसे पहले आएगा, वह कबड्डी का ही है. यूं भी कबड्डी कोई आज का खेल तो है नहीं, बल्कि प्राचीन काल से ही हमारे देश में प्रचलित रहा है और गांव-गांव शहर-शहर तक यह खेल हर दौर में खेला गया है. सोने पर सुहागा वाली बात यह है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी जो कबड्डी प्रतियोगिताएं आयोजित हो रही हैं, उसमें भी भारत का स्थान सर्वोत्कृष्ट है. इस क्रम में सबसे ताजा ख़बर यही है कि भारत कबड्डी वर्ल्ड कप में तीसरी बार खिताब पर कब्जा करने में सफल साबित हो गया है. अहमदाबाद में खेले गए कबड्डी विश्वकप के फाइनल में भारत ने ईरान को 9 अंकों के बड़े अंतर से हरा दिया है. देश भर से कबड्डी टीम की इस जीत पर बधाइयां मिल रही हैं तो देशवासी इस गौरव के क्षण का आनंद लेने में मगन हैं. गौरतलब है कि भारत कबड्डी वर्ल्ड कप का मौजूदा चैंपियन भी है, जिसने 38 – 29 से मात देते हुए तीसरी बार यह खिताब अपनी झोली में डाल लिया है. बताते चलें कि इस मैच में भारत की जीत के हीरो दिग्गज रेडर अजय ठाकुर रहे. इस बेहतरीन कबड्डी खिलाड़ी ने ना केवल पीछे चल रही भारतीय टीम को आगे किया और ईरान से बराबरी दिलाई बल्कि महत्वपूर्ण समय पर उन्होंने कुल 12 अंक हासिल करके भारत की जीत पक्की कर दी. एक समय तो ऐसा लगा था कि भारत इस फाइनल मैच को गंवा देगा, किन्तु टीम इंडिया के प्लेयर्स ने देशवासियों को नाउम्मीद नहीं किया और कबड्डी प्रेमियों को तो इस जीत से असीम प्रेरणा मिली ही. Kabaddi world cup 2016, Winner, India, Hindi Article, New, History of Sports in Hindi, Pro Kabaddi, Players, Growing game

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अगर इस फाइनल मैच की बात करें तो इसमें पहली रेड भारत ने ही डाली लेकिन कप्तान अनुप कुमार खाली हाथ लौट आए. फिर अजय ठाकुर ने भारत का खाता खोला. मैच चलता रहा, किन्तु एक समय ऐसा आया कि ईरान के खिलाड़ी मिराज ने 9 – 7 से अपने देश को आगे कर दिया, लेकिन भारत ने सुपर टैकल करते हुए इसको 10 – 9 कर दिया. हालाँकि, ईरानियों ने काफी संघर्ष किया और इसकी बदौलत हाफ टाइम तक ईरानी खिलाड़ियों ने 18 – 13 की बढ़त ले ली थी. पर सेकंड हाफ में भारत की ओर से दमदार खेल दिखाते हुए अजय ठाकुर ने लगातार कई सफल रेड डाली और फिर भारतीय खेमे में खुशी की लहर दौड़ गयी. भारतीय प्रधानमंत्री ने कबड्डी टीम की जीत पर बधाई देते हुए ट्वीट किया तो महानायक अमिताभ बच्चन ने एक के बाद एक कई ट्वीट किये और ईरान पर भारत की जीत को सेलिब्रेट किया. अगर ईमानदारी से कहा जाए तो इस बार कबड्डी वर्ल्ड कप जीतने पर जो उत्साह समाज के अनेक क्षेत्रों में देखा गया, वैसा अवसर पहले दुर्लभ ही था. अगर मनोविज्ञान के नजरिये से देखें तो लोग बस भारत देश को जीतना देखना चाहते हैं, वह चाहे क्रिकेट हो, कबड्डी हो अथवा कोई दूसरा खेल ही क्यों न हो! हाँ, क्रिकेट ने थोड़ी पहले एंट्री मारकर खुद को प्रोफेशनल ढंग से जरूर पेश कर दिया, जिसका उसे लाभ भी मिला है. किन्तु, इसका यह मतलब कतई नहीं है कि दूसरे खेलों को देशवासी प्यार नहीं करेंगे. इसका साक्षात उदाहरण कबड्डी ही है. देखा जाए तो कबड्डी की लोकप्रियता में विश्व कप के अतिरिक्त प्रो कबड्डी जैसे आयोजनों का बड़ा ही महत्व है. अगर एक नज़र कबड्डी की देश और विदेशों में उपस्थिति पर डालते हैं तो पाते हैं कि ग्रुप में खेले जाने वाले इस खेल को उत्तर भारत में कबड्डी तो दक्षिण भारत में भी चेडु-गुडु और पूर्व में हु तु तू के नाम से जाना जाता है. पड़ोसी देशों में भी बड़े पैमाने पर कबड्डी खेली जाती है, जिसमें बांग्लादेश में हा-दो -दो, श्रीलंका में गुड्डु और थाईलैंण्ड में थीचुब नाम से यह खेल प्रचलित है. Kabaddi world cup 2016, Winner, India, Hindi Article, New, History of Sports in Hindi, Pro Kabaddi, Players, Growing game

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इस खेल के इतिहास की बात करें तो इसका उद्भव प्रागैतिहासिक काल से माना जा सकता है, हालाँकि इसका कोई लिखित साक्ष्य नहीं है. समझा जा सकता है कि जब मनुष्य ने आत्मरक्षा के शिकार के लिए प्रतिक्रियात्मक क्रियाएं विकसित की होंगी तो उसी में यह खेल विकसित हुआ होगा. वैसे महाभारत काल के एक ताम्रपत्र में उल्लेख है कि भगवान कृष्ण ने अपने साथियों के साथ कबड्डी से मिलता-जुलता खेल खेला है. आधुनिक काल के इतिहास में बीसवीं सदी के पहले दो दशकों में महाराष्ट्र के विभिन्न सामाजिक संगठनों ने कबड्डी के खेल को औपचारिकता व लोकप्रियता प्रदान करने में प्रमुख भूमिका निभाई, तो 1918 में कुछ नियम बनाए गए और प्रतियोगिताएं भी आयोजित की गई थीं. वैसे कबड्डी खेल हेतु औपचारिक संगठन और कबड्डी के नियमों को 1923 में भारतीय ओलंपिक संघ के तत्वाधान में उठाया गया था, और इसके बाद हनुमान व्यापक व्यायाम प्रसारक मंडल ने 1936 के बर्लिन ओलंपिक में इसका प्रदर्शन किया था. इसके बाद 1950 में भारतीय कबड्डी महासंघ की स्थापना हुई, तो पुरुषों के लिए पहली राष्ट्रीय प्रतियोगिता 1952 में मद्रास में आयोजित की गई थी, जबकि महिलाओं के लिए पहली राष्ट्रीय प्रतियोगिता 1955 कोलकाता में आयोजित हुई. इतिहास से अलग हटकर अगर हम इसकी अहमियत पर गौर करते हैं तो कबड्डी शारीरिक व्यायाम होता है, तो सर्वाधिक कम खर्चीला खेल भी है. इसमें कुछ खास खर्च नहीं होता है, लेकिन शारीरिक कसरत सर्वाधिक होती है और सबसे बड़ी बात इसके लिए बहुत ज्यादा जगह की भी आवश्यकता नहीं पड़ती है. शायद इसलिए आसानी से यह खेल गांव शहर और वैश्विक स्तर पर ज़माने से लोकप्रिय है. इससे जुड़े कुछ रोचक तथ्यों की बात करें तो कबड्डी शब्द की उत्पत्ति तमिल शब्द ‘काईपीडी’ से मानी जाती है. ऐसे ही कबड्डी भारत के बड़े राज्य तमिलनाडु, महाराष्ट्र, बिहार, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और पंजाब का स्टेट गेम है. Kabaddi world cup 2016, Winner, India, Hindi Article, New, History of Sports in Hindi, Pro Kabaddi, Players, Growing game

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यूं तो भारत में तमाम खेल होते हैं लेकिन कबड्डी में सर्वाधिक मेडल्स भारत के पास हैं. और संयोग से महिला और पुरुष दोनों वर्गों में भारत इस खेल में सबसे आगे है. इसकी लोकप्रियता देखते हुए इस रोमांचक खेल पर बहुत सारी हिंदी फिल्में भी बनी हैं, जिसमें परदेस, हु तू तू, कबड्डी तथा बदलापुर बॉयज इत्यादि हैं. आधुनिक कबड्डी में अगर हम रोमांच के साथ ग्लैमर बढ़ने की बात करें तो इस खेल में बड़ा बदलाव आया जब ‘प्रो कबड्डी’ की शुरुआत की गयी. फिर बड़े नाम और आम लोगों को भी इस खेल में ग्लैमर दिखने लगा. जाहिर तौर से प्रो कबड्डी इससे जुड़े लोगों के लिए एक बड़ा मंच था, जिसमें खिलाड़ियों को अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिला और वैश्विक स्तर पर भारतीय खिलाड़ियों ने अपनी धाक जमाई. इसी तरह 1972 में भारत के एमेच्योर कबड्डी महासंघ का गठन किया गया, तो 1980 में पहला चैम्पियनशिप खेला गया. 1982 में एशियाई खेलों में प्रदर्शन हुआ तो 1985 में सैफ खेलों में प्रथम प्रदर्शन हुआ, जिसका आयोजनस्थल ढाका था. इसी तरह 1990 में एशियाई खेलों में प्रथम प्रदर्शन हुआ जिसका आयोजन बीजिंग में हुआ था तो 2004 में अंतरराष्ट्रीय कबड्डी महासंघ का गठन किया गया. 2004 में ही कबड्डी विश्वकप मुंबई में खेला गया तो 2005 में एशियाई महिला चैंपियनशिप हैदराबाद में खेली गई. इसी क्रम में, 2013 में एशियाई इंडोर खेलों में महिला कबड्डी को शामिल किया गया, तो 2014 में प्रो कबड्डी शुरू होने के बाद इस खेल में भारतीय युवाओं का रूझान तेजी से आगे बढ़ा. इस क्रम में अगर सीधे तौर पर कुछ पॉइंट दिया जाए जो कबड्डी के फेवर में आते हैं तो यह एक ऐसा खेल है जिसमें हमारा देश सबसे आगे है और आज के समय में तो योग जैसे जैसे आगे बढ़ रहा है तो कई लोग योग और कबड्डी को एकसाथ जोड़कर भी देखने लगे हैं. इसके पीछे तर्क यह है कि कबड्डी में सांस रोकने का महत्वपूर्ण स्थान है, तो योग में भी प्रणायाम अभ्यास काफी अहमियत रखता है. जाहिर तौर पर आप चाहे कबड्डी को खेल के तौर पर लें, स्वास्थ्य हेतु व्यायाम के तौर पर लें अथवा कैरियर के तौर पर लें, हर जगह यह फिट और हिट है. तो भारतीय खिलाड़ियों द्वारा विश्व कप जीतने की खुशियां मनाइये और बोलिये … कबड्डी, कबड्डी, कबड्डी !!

मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.

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