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तेरा क्या होगा रे ‘जीएसटी’!

Mithilesh's Pen
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शायद ‘जीएसटी’ एक ऐसा जुमला बन गया है, जो मोदी सरकार बनने से आज तक सबसे ज्यादा कहा सुना जा चुका है. यूं तो ‘गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स’ पिछली यूपीए सरकार का ही बिल है, किन्तु तब भाजपा और अब कांग्रेस (Congress Party) ने इसके नाम सहित, दुसरे कई मुद्दों पर संसद-सत्रों को बर्बाद कर दिया गया है. इस बार आल पार्टी मीटिंग लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन की तरफ से (Monsoon Session 2016, GST Bill) बुलाई गई थी, जिसमें नरेंद्र मोदी ने अपोजिशन से जीएसटी बिल पास कराने में मदद करने की अपील के साथ ही सबको ये याद दिलाया कि “देश हित को बाकी चीजों से ऊपर रखा जाना चाहिए”. आखिर इस बात में कुछ गलत तो है नहीं, आप चाहे जिस भी पार्टी से सम्बन्ध रखते हों, चाहे सत्ता में हों या विपक्ष में लेकिन जब भी कोई देश की प्रगति से जुड़ा मुद्दा आता है, तो सभी पार्टियों को चाहिए कि एक साथ मिलकर काम करें. जहाँ तक जीएसटी की बात है तो जीएसटी को इस दशक का सबसे अहम आर्थिक सुधार माना जा रहा है. जीएसटी लागू होने के बाद वस्तुओं और सेवाओं पर अलग-अलग लगने वाले सभी कर एक ही कर में समाहित हो जाएंगे. इससे पूरा देश एकीकृत बाजार में तब्दील हो जाएगा और ज्यादातर अप्रत्यक्ष कर जीएसटी में समाहित हो जाएंगे. इससे पूरे देश में वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें लगभग एक हो जाएंगी, जिससे मैन्युफैक्चरिंग लागत घटेगी, तो उपभोक्ताओं के लिए सामान भी सस्ता होगा.


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अप्रत्यक्ष कर की इस नई व्यवस्था से अर्थव्यवस्था को 60 लाख करोड़ रुपये का महत्वपूर्ण फायदा होगा. गौरतलब है कि लोकसभा में ये बिल पहले ही पास हो चुका है, लेकिन राज्यसभा में इसकी राह में बार-बार रोड़े अड़ा दिए जाते हैं, जिसके लिए कांग्रेस सीधे तौर पर जिम्मेदार मानी जा रही है और इसके लिए उसकी खासी आलोचना भी हो चुकी है. हालाँकि, अपनी आलोचना से और प्रधानमंत्री के बार-बार के प्रयासों से कांग्रेस (Congress Party) भी इस बार नरम रुख अपनाती दिख रही है. इस सम्बन्ध में कांग्रेस लीडर गुलाम नबी आजाद ने कहा कि “कांग्रेस विधेयकों को पास कराने में रोड़ा नहीं डालेगी, लेकिन मेरिट के आधार पर ही उनका सपोर्ट करेगी.” देखा जाए तो कांग्रेस की मनः स्थिति अभी साफ़ होती नहीं दिख रही है और राज्यसभा में सरकार का बहुमत न होने का वह राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश (Monsoon Session 2016, GST Bill) कर रही है. ये बात अलग है कि  इस बात का उसे नुक्सान ज्यादा हो रहा है, क्योंकि ज्यादातर राज्य जीएसटी बिल के फेवर में हैं, किसी भी पार्टी ने इसका विरोध नहीं किया है और इसलिए कांग्रेस के खिलाफ जनता में भी सन्देश निर्मित हो रहा है कि वह बेवजह सरकार को परेशान और देश का नुक्सान कराने पर तुली हुई है. वैसे भी, भारत में 20 तरह के टैक्स लगते हैं और जब एक टैक्स इन सबकी जगह ले लेगा तो वो होगा जीएसटी और इसलिए टैक्स के मामले में बेहद सरलता आ जाएगी, इस बिल के पास होने के बाद.

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इस मानसून-सत्र में जीएसटी के अतिरिक्त, सरकार 16 अन्य बिलों को भी लाने की तैयारी में है, जिसमें मुख्यतः कंज्यूमर प्रोटेक्शन बिल 2015, बेनामी ट्रांजैक्शन (प्रॉहिबिशन) अमेंडमेंट बिल 2015, लोक पाल एंड लोकायुक्त और अदर रिलेटेड लॉ (अमेंडमेंट बिल) जैसे बिल शामिल हैं. जाहिर है, जीएसटी के साथ-साथ ये सभी बिल भी राज्यसभा से पास होने की लाइन में खड़े हैं. हालाँकि, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) भी अब जीएसटी के समर्थन में खुलकर आ खड़े हुए हैं और इसे देश के लिए लाभकारी भी बताया है. इसके साथ-साथ तृणमूल कांग्रेस, बीजू जनता दल, समाजवादी पार्टी जैसे गैर-एनडीए पार्टियां भी जीएसटी के प्रति समर्थन दे चुकी हैं. जाहिर है, कांग्रेस इस बार भारी दबाव में (Monsoon Session 2016, GST Bill) है और देशहित में उसे अपना संकुचित स्वार्थ और सरकार-विरोध का राग, कम से कम राज्यसभा में स्थगित कर देना चाहिए. हाँ, अगर उसे सरकार का विरोध ही करना है तो देश की जनता को वह जरूर कन्विंस कर सकती है कि सरकार की पाकिस्तान-नीति, महंगाई-नियंत्रण नीति, जम्मू-कश्मीर नीति, काला-धन  पर उसका रवैया असफल रहा है. इसी पब्लिक-कन्विन्सिंग से शायद कांग्रेस अपना खोया जनाधार भी वापस पा सकती है, किन्तु अगर वह जीएसटी जैसे बिलों पर अपना हठ नहीं छोड़ती है तो जनता उसे और बुरा दिन दिखला सकती है, इस बात में दो राय नहीं!

मिथिलेशकुमारसिंह, नई दिल्ली.

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