नामकरण – Naming, hindi short story by mithilesh anbhigya
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अभी नवजात को आये कुछ ही घंटे हुए थे और हॉस्पिटल से जच्चा बच्चा डिस्चार्ज भी नहीं हुए थे कि उसके नामकरण को लेकर परिवार में सियासत शुरू हो गई.
उसके दादा ने डिक्टेटरशिप हांकते हुए कहा कि मैंने दो महीने पहले से ही नाम सोच रखा है और वह है देवांश. किसी को कोई ऐतराज है क्या? उसकी दादी ने बोला कि चूँकि वह शंकर भगवान की शादी के दिन पैदा हुआ है, इसलिए उसका नाम शम्भू होगा, जो उसके स्व. परदादा के नाम का एक अंश भी था, या फिर विश्वनाथ रखा जायेगा, जो भगवान शंकर का ही एक प्रसिद्द नाम है. नहीं देवांश ठीक है, दादा कड़क स्वर में हेकड़ी से बोले. इससे पहले दादी मुंह खोलतीं कि लड़के के पापा ने बात टालते हुए कहा, मैं इसके बड़े ताऊ से फोन पर पूछता हूँ. उसके बड़े ताऊ इंटरनेट से अलग मॉडर्न नाम सोचकर बैठे थे और जब उनको पता चला कि नामकरण की राजनीति में वह पिछड़ गए हैं तो वह बिगड़ते हुए बोले- मुझसे पहले क्यों नहीं पूछा, उसका नाम आर्जव रहेगा, बिलकुल मॉडर्न. उसके दोस्तों को कितना गर्व होगा. जैसे ही लड़के के पापा ने फोन रखा, उसके फोन पर लड़के के मामा का फोन आ गया. छूटते ही लड़के के मामा ने कहा, मेरा देवांश भांजा दिखने में कैसा है. देवांश ? अभी तो नामकरण हुआ ही नहीं है. फोन रखते ही फिर उसकी बुआ, बड़ी मम्मी सबका फोन आया और सबने उस नन्हें को देवांश कहकर पुकारा तो लड़के के पापा और दादी का माथा ठनका कि आखिर यह चक्कर क्या है? हॉस्पिटल के कोने में खड़े दादा को मुस्कराते हुए देखकर दादी तुरंत समझ गयीं कि इन्होंने फोन करके सभी रिश्तेदारों को लड़के का नाम देवांश बता दिया है. अपना दांव चलते न देखकर दादी ने एक मजबूत पासा फेंका कि लड़के के ऊपर सबसे ज्यादा अधिकार उसकी माँ का होता है, इसलिए वह जो नाम बताएगी वही नाम रखा जायेगा. दादा अपना पासा पलटता देखकर जोर से बोले – अरे बहु से पूछने की जरूरत क्या है? वैसे भी उसका सुझाव वही होगा जो मेरा है. उसका नाम देवांश होगा. मैं बहु से पूछकर आती हूँ, दादी खुश होते हुए बहु की ओर भागीं. अब बाजी उनके हाथ में जो थी. बेड पर लेटी बहु को धमकाते हुए बोलीं, उसका नाम शम्भू ही बोलना, आखिर मैं उसकी दादी हूँ. तभी उसके दादा दरवाजे से बोले- बहु इसकी बात मत सुनना, उसका नाम देवांश रखना. डरना मत अपनी सास से, मैं हूँ ना ! हटिये, हटिये आप लोग. यहाँ मरीज को परेशान क्यों कर रहे हो? लेडी डॉक्टर अपनी विजिट पर थीं. दादा तो खिसक लिए, जबकि दादी को जमकर लेक्चर पिलाया डॉक्टर ने. बाहर आकर दादा ने फिर से अफवाह फैला दी कि बहु ने देवांश नाम पर अपनी सहमति दे दी है. और सियासत की यह बाजी भी दादा के हाथ में आ गयी और लड़के का नाम देवांश हो गया. खार खाए बैठे दादी, बड़े ताऊ, बड़ी मम्मी और लड़के के पापा समेत सभी अगली बार के नामकरण की गोटी सेट करने में लग गए, जबकि दादाजी अपनी मूंछों पर ताव देते फोन पर अपनी विजय सूचना फैलाने में लगे हुए थे. – मिथिलेश ‘अनभिज्ञ’
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