- 361 Posts
- 113 Comments
असलियत यही है कि किसी गवर्नर तक को राजनीति करने के लिए बार-बार, चीख-चीख कर साबित करना पड़ता है कि वह अमेरिकी हैं, कोई एशियाई या अफ़्रीकी नहीं! सिर्फ जिंदल ही क्यों, यह हालत कमोबेश अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की भी रही है, जिसके वह पूर्व में भी शिकार हुए हैं और इस बार भी हुए. रिपब्लिकन पार्टी के नेता अरबपति डोनल्ड ट्रंप की इसीलिए आलोचना हो रही है क्योंकि उन्होंने अपने एक समर्थक की घृणास्पद टिप्पणी की आलोचना नहीं की. इस समर्थक ने कहा था कि ओबामा मुसलमान हैं और अमरीकी भी नहीं हैं. इससे पहले उस समर्थक ने यह भी कहा था कि इस देश में एक समस्या है, और उसका नाम है ‘मुसलमान’. डोनाल्ड ट्रंप ने इस टिप्पणी को हंस कर रफ़ा-दफ़ा कर दिया था, जिसके लिए उनकी जबरदस्त आलोचना हो रही है. अब आप कल्पना कीजिये कि वैश्विक मामलों में टांग अड़ाने को अपना जन्मजात अधिकार समझने वाला अमेरिका अपने राष्ट्रपति के बारे में भी नस्लभेदी टिप्पणी करने से बाज नहीं आता है. बराक ओबामा जब दूसरी बार राष्ट्रपति चुने गए थे, तब एक धारणा यह बनी थी कि अमेरिका में गोरों और कालों के बीच नस्लभेद खत्म हो जाएगा या कम से कम घटेगा जरूर, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. अमेरिका में लगातार हुए नस्लीय दंगों से यह हकीकत कई बार सामने आयी, जिसमें, दक्षिण केरौलिना के चार्ल्सटन शहर में अश्वेतों के ऐतिहासिक चर्च में डायलन रूफ नाम के श्वेत युवक ने हमला कर नौ लोगों की हत्या कर देना एक प्रमुख घटना है.
नागरिक व मानवाधिकारों की लड़ाई में बदल गई थी. खैर, पुरानी बातों को छोड़कर अगर हम इक्कीसवीं सदी की बात भी करें तो नस्लभेद का एक और उदाहरण अमेरिका में देखने को मिला, जिसने समस्त विश्व का ध्यान अपनी ओर खींचा है. अमेरिका के शहर टेक्सस में 14 साल के मोहम्मद अहमद को टेक्सस पुलिस ने सिर्फ इसलिए गिरफ्तार कर लिया क्योंकि उन्होंने अपने स्कूल प्रोजेक्ट के लिए डिजिटल घड़ी बनाई थी. जब वह उसे स्कूल ले कर गया तो उसकी टीचर डिजिटल घड़ी को बम समझ कर नाराज हो गई और पुलिस को बुला लिया. पुलिस ने भी आनन फानन में 14 साल के टीनेजर को हथकड़ी पहना कर गिरफ्तार कर लिया. अब इसे टीचर और पुलिस की नासमझी कहें या कुछ और, इसे समझना मुश्किल नहीं है! समझा जा सकता है कि जब एक पूरी की पूरी कम्युनिटी ही नस्लभेद, इस्लामोफोबिया, श्रेष्ठता-ग्रंथि से पीड़ित हो गयी हो, तो इस प्रकार की घटनाएं सामने आएँगी ही. जब अहमद की खबर सोशल मीडिया के सहारे दुनिया भर में फैली कि लड़के को घड़ी बनाने कि वजह से गिरफ्तार कर लिया गया है, तो ट्विटर और फेसबुक पर लोग उसके समर्थन में आ गए. बाद में फेसबुक के ज़ुकरबर्ग और अमेरिकी राष्ट्रपति अहमद के बचाव में ज़रूर आये, लेकिन इस घटना ने अमेरिकी मानसिकता को एक बार फिर सामने ला दिया. इसी सन्दर्भ में, एक रिपोर्ट के मुताबिक़ करीब 40% अश्वेत छात्रों को स्कूलों से या तो निकाल दिया जाता है या प्रवेश ही नहीं दिया जाता है. ये स्थिती महज स्कूलों तक ही सीमित नहीं है, अपितु वरिष्ठ संस्थानों में भी नस्लवादी की शिकायत होना आम बात है. केवल अफ्रीकन-अमेरिकन ही नहीं, भारतीय लोगों को भी अमेरिका में अक्सर नस्लभेदी अन्याय झेलना पड़ता है. शाहरुख खान और प्रियंका चोपड़ा जैसे कई सेलेब्रिटीज अमेरिका में नस्लभेद का शिकार हो चुके हैं, अभी हाल में ही एक भारतीय बुजुर्ग की ह्त्या, अमेरिकन पुलिस के कुछ कुंठित गोरों ने कर दी थी. अमेरिका में 53 वर्षीय एक सिख पर बर्बर हमले की घटना को अधिकारियों ने घृणा अपराध के बजाय रोड रेज का मामला करार दिया जिससे स्थानीय सिख समुदाय बेहद आक्रोशित हुआ था. अन्य आंकड़ों (UCR) के अनुसार हर साल कुल दर्ज हुए हिंसा के मामलों में से 40.6% मामले ‘नस्लवादी’ हिंसा से जुड़े होते हैं. ज़ाहिर है कि बदलते वैश्विक समीकरणों में अगर कोई नस्लभेदी मानसिकता वाला व्यक्ति अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव जीत जाता है तो न केवल अमेरिका में, बल्कि पूरे विश्व में अशांति और बढ़ेगी ही, इसलिए आवश्यक है कि विश्व के सबसे पुराने लोकतंत्र की आत्मा बची रहे और इसकी जिम्मेदारी न केवल अमेरिकी राष्ट्रपति के उम्मीदवारों को, बल्कि वहां की जनता को भी उठानी पड़ेगी, वह भी नस्लभेदी मानसिकता को त्यागकर. समझना दिलचस्प होगा कि अपने दो कार्यकालों में बराक ओबामा ने अमेरिका की जिस संस्कृति पर सार्वजानिक रूप से चिंता प्रकट की थी, वह अमेरिका की बन्दूक-संस्कृति के बारे में थी. अंदाजा लगाया जा सकता है कि बंदूकों का सर्वाधिक इस्तेमाल नस्लभेदी अपराधों में ही किया जाता होगा. अपनी कुंठा को व्यक्त करने के लिए, लोग धड़ल्ले से सार्वजनिक स्थानों में गन चला रहे हैं, हर रोज अमेरिका में 30 लोग इस समस्या के कारण मरते हैं. इसी सन्दर्भ में, अमेरिकी राष्ट्रपति जहाँ मुस्लिम समुदाय को जोड़ने की नीति पर चलने की कोशिश कर रहे हैं, वहीँ नस्लभेद की आंतरिक समस्या और भी गंभीर होती जा रही है. अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने व्हाइट हाउस में रमजान पर इफ्तार पार्टी भी दी थी, जिसके माध्यम से अमेरिका ने 1.5 बिलियन मुस्लिमों को यह संदेश देने की कोशिश की थी कि अमेरिका उनके साथ खड़ा है, लेकिन इस शक्तिशाली देश में नस्लभेद का सवाल जस का तस खड़ा है और न केवल अमेरिकी, बल्कि शेष विश्व भी उत्सुकता से इंतजार कर रहा है कि ओबामा का उत्तराधिकारी डोनाल्ड ट्रम्प जैसा होगा, जो नस्लभेदी टिप्पणियों पर हंसकर टाल-मटोल करेगा, जो कि इसे मौन समर्थन देने जैसा है अथवा उसका नजरिया शेष विश्व के प्रति सहिष्णुता वाला होगा. आखिर, दादा होने का कुछ फ़र्ज़ तो अमेरिका निभाएगा ही … ! या फिर वह नस्लभेद के कारण किसी गृहयुद्ध या विश्वयुद्ध को न्यौता देगा.
President election in America, USA, New Hindi article on racism,
Ahmed Mohammed,Texas,Digital Clock,नस्लभेद, बराक ओबामा, अमेरिकी राष्ट्रपति, Racism in US, Barack Oabma, US President,हिलेरी क्लिंटन, ईमेल का इस्तेमाल, हिलेरी ने मांगी माफी, Hillary Clinton, Hillary says sorry, Email issue, US,जो बाइडेन, अमेरिका, अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव, Joe Biden, USA, US presidency bid, जेब बुश,ब,Jeb Bush,व्हाइट हाउस,राष्ट्रपति पद का चुनाव,अमेरिकी राष्ट्रपति पद का चुनाव
Read Comments