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फ़िल्मी दुनिया के ‘भगवान’ सिर्फ ‘रजनी सर’ ही क्यों, दूसरा क्यों नहीं?

Mithilesh's Pen
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हमारे देश में वैसे भी फिल्मों का प्रभाव किसी भी दुसरे माध्यम से ज्यादा है और बात जब ‘रजनीकांत’ जैसे सुपर-स्टार की हो तो फिर बाकी सब कुछ उसके सामने ‘छोटा’ दिखाई देने लगता है. आज 21वीं सदी में क्या आप इस बात की कल्पना भी कर सकते हैं कि किसी फिल्म की रिलीज-डेट पर कई बड़ी कंपनियां ‘छुट्टी’ की घोषणा कर दें, क्योंकि उन्हें इस बात की आशंका ही नहीं, बल्कि पूरा ज्ञान है कि अगर छुट्टी नहीं भी की गयी तो तमाम एम्प्लोयी ‘बीमारी’ या कोई और ‘बहाना’ करके छुट्टी ले ही लेंगे. खैर, रजनीकांत की नयी फिल्म कबाली रिलीज हो गयी है और साउथ की फिल्मों की चर्चा देश और बाहर हो रही हो ऐसा गौरव रजनीकांत की फिल्मों (Rajinikanth Kabali Review, Hindi) को ही मिलता रहा है. हालाँकि, अपवाद स्वरुप ‘बाहुबली’ ने भी यह गौरव हासिल किया था. पर बाहुबली, सिर्फ एक फिल्म भर ही नहीं थी बल्कि भारतवासी जिस महाभारत की गौरव-गाथा बचपन से सुनते-देखते आ रहे हैं, उससे प्रेरित एक जीवंत-चित्रकथा सरीखी थी और उसका फिल्मांकन एवं उसमें प्रयोग की गयी तकनीक तो किसी भी हॉलीवुड फिल्म से ‘बीस’ ही थी. जहाँ तक बात जीवित किंवदंती बन चुके ‘रजनीकांत’ की है तो उनके लिए ऐसी कोई जरूरी शर्त नहीं है, क्योंकि भगवान के दर्शन ही ‘भक्त’ के लिए पर्याप्त होते हैं. वैसे, उनकी फिल्में और उसकी कहानी ‘उम्दा’ तो होती ही है, इसके साथ-साथ उनकी लाजवाब एक्टिंग एक बोनस की तरह होती है.

कश्मीर-समस्या ‘आज़ादी से आज तक’ अनसुलझी क्यों और आगे क्या ?

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इसी क्रम में कई बार मन में प्रश्न उठता है कि क्या वाकई एक फिल्म अभिनेता ‘भगवान’ की तरह लोकप्रिय हो सकता है और अगर है तो उसके पीछे कारण क्या है! सच कहें तो आप उनकी फिल्में देख लें, उसमें जो किरदार ‘रजनी सर’ के लिए गढ़े जाते हैं वह ‘अन्याय के खिलाफ़’ लड़ने वाले आम आदमी का प्रतिनिधित्व करते दिखते हैं. हालिया फिल्म ‘कबाली’ को ही ले लीजिए, इसमें भी वह अपने लोगों के अधिकारों के लिए लड़ते दिखाई दे रहे हैं. ऐसा नहीं है कि इस तरह के किरदार सिर्फ रजनीकांत ही करते रहे हों, बल्कि दुसरे तमाम हीरो भी इसीलिए ‘हीरो’ की पदवी पाए बैठे हैं कि उन्होंने भी ‘जीरो-टॉलरेंस’ पर अन्याय के खिलाफ़ लड़ने वाले किरदार किये हैं. आखिर अमिताभ बच्चन भी ‘एंग्री-यंगमैन’ (Angry young man Amitabh Bachchan) इसीलिए तो थे और किसी ज़माने में उनके लिए भी खूब तालियां बजती थीं. हालाँकि, बदलते सिनेमाई दौर में अब ‘हीरो’, शब्द की बजाय ‘एक्टर’ ज्यादा प्रचलित हो चला है. अक्षय कुमार किसी फिल्म में देशभक्त बन अपना किरदार जीवंत करते हैं तो किसी फिल्म में ‘फूहड़ हास्य’ के जरिये दर्शकों को हंसाने का प्रयत्न करते हैं.

दूसरे के सर पर पैर रखकर आगे बढ़ने की आदत!

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शाहरुख़ खान जैसे एक्टर को ‘रॉयल स्टैग’ जैसी शराब का प्रमोशन करने में हिचक नहीं (Shahrukh Khan bollywood) होती है तो प्रियंका चोपड़ा खुलकर लोगों को ‘ब्लेंडर प्राइड’ शराब पीने के लिए कहती हैं. मैगी, हाजमोला, कोल्ड-ड्रिंक जैसे प्रोडक्ट्स को अमिताभ बच्चन जैसा व्यक्ति बिना उसकी क्वालिटी और इफ़ेक्ट जाने अगर प्रमोट करता है तो ज़ाहिर है, वह “हीरो” नहीं रहेगा और इसलिए रजनीकांत को छोड़ कर बाकी सब “एक्टर” मात्र हैं, जो पैसे के लिए नाच-गान (Rajinikanth Kabali Review, Hindi) करते हैं, कभी पैंट उतार देते हैं तो कई बार ‘अंडरवियर’ भी!

ब्रांड ऐम्बैसडर की कुछ तो जवाबदेही हो!

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टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट में मैंने पढ़ा कि 2006 में एक ‘कोला-कंपनी’ ने रजनीकांत को अपना ब्रांड-अम्बैसडर बनने के लिए अप्रोच किया, किन्तु आप यह जानकार आश्चर्य करेंगे कि 2 करोड़ की भारी-भरकम रकम ऑफर होने के बावजूद रजनीकांत ने उस कंपनी को मीटिंग के लिए समय तक नहीं दिया. पैसा और बढ़ाने के बावजूद भी उस कंपनी को ‘भाव’ नहीं मिला. साफ़ है कि रजनीकांत अपनी इमेज को बेचते नहीं हैं और अपने फैन्स को ‘शराब और गुटखा’ खाने के लिए नहीं कहते हैं. शायद इसीलिए वह 21वीं सदी में ‘भगवान’ हैं, ‘हीरो’ हैं और बाकी लोग इंग्लिश में ‘एक्टर’ और देशी भाषा में ‘भांड’!

बॉलीवुड को वाकई ‘योग्यता’ की फ़िक्र है?

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Blender Pride, Brand Ambassador

खैर, दुनिया बहुत आगे बढ़ चुकी है और कइयों के लिए ‘हीरो’ और ‘एक्टर’ की चर्चा बेमानी है, इसलिए आइये थोड़ी बात फिल्म कबाली की कर लें. कई विश्लेषकों ने इसे 3 स्टार की रेटिंग दी है तो कहानी को औसत से ऊपर बताया है. शूटिंग के तरीके और रजनीकांत की मौजूदगी ने इस फिल्म को एक विजुअल ट्रीट की तरह पेश किया है. साथ ही साथ मलेशिया की लोकेशंस बेहतरीन हैं और फिल्म की सिनेमेटोग्रफी कमाल (Film review in Hindi) की है. इसलिए आप अगर रजनीकांत को भगवान नहीं भी मानते हों तो, उन्हें ‘हीरो’ मानकर यह फिल्म देख सकते हैं और यकीन मानिये, उनके चेहरे और उनकी आत्मा का एक ही भाव आपको फिल्म में दिखेगा ‘न्याय के पक्ष’ में उठने वाली आवाज. इसके साथ-साथ रजनीकांत ने फिल्म में अपन-अलग अलग रूपों को हमेशा की तरह बखूबी निभाया ही है, जो अपने आप में ही आकर्षण का केंद्र हैं. एक्ट्रेस राधिका आप्टे के अभिनय के बारे में किसी को कोई संशय नहीं होना चाहिए, क्योंकि उन्होंने खुद को कई बार साबित किया है. इसी कड़ी में, साउथ के डायरेक्टर पा रंजीत ने ‘अटकत्ती’ और ‘मद्रास’ जैसी बेहतरीन तमिल फिल्मों के निर्माण के बाद ‘कबाली’ में सुपरस्टार ‘रजनी सर’ (Rajinikanth Kabali Review, Hindi) के साथ धमाल मचाया है. ज़ाहिर है, रजनी सर के फैन्स के लिए इससे बेहतर दूसरा तोहफा क्या हो सकता है भला! हाँ, दुसरे ‘एक्टर्स’ को भी सिनेमा जाना चाहिए, क्या पता इससे वह ‘हीरो और एक्टर्स’ के बीच कुछ फर्क समझ पाएं!

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मिथिलेशकुमारसिंह, नई दिल्ली.

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