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हिंदुस्तान की बदलती डेमोग्राफी

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पृथ्वी सूर्य का चक्कर काटती  है ,चन्द्रमा पृथ्वी का चक्कर काटता है।  सूर्य हमेशा पूर्व से उगता है। यह एक सार्वभौमिक सत्य (Universal Truth) है। परन्तु सामजिक, राजनैतिक नियमों को यूनिवर्शल ट्रूथ (अटल) नहीं कहा जा सकता। इनमें निरंतर परिवर्तन होता रहता है। देश-काल अनुसार यह  नियम बदलते रहते है,  समय के अनुसार बदलते नियम ही देश व समाज को उन्नतिशील बनाते है। यही सत्य है। “डेमोग्राफी” भी कुछ ऐसे ही है। अफगानिस्तान , पकिस्तान , बांग्लादेश  की “डेमोग्राफी” बदलने का परिणाम यह हुआ कि  यह देश हिन्दू बहुल से मुस्लिम बहुल हो गए ।

 

 

हिन्दुस्तान का बंटवारा हिन्दू-मुस्लिम धर्म के आधार पर हुआ। 1947 की जनसांख्यिकी  ( “डेमोग्राफी”-Demography) के आधार पर आजादी के समय हिन्दुस्तान में हिन्दुओं को बहुसंख्यक व मुस्लिम को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया। वर्तमान में केंद्र ने छह धार्मिक अनुयाइयों- मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध, जैन व पारसी शामिल हैं, इनको राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक घोषित कर रखा है सरकार ने अल्पसंख्यक को सामान्य नागरिकों के समानधिकार के अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के विशेषाधिकार दे रखे है।

70 वर्ष बाद  आज हिन्दुस्तान की  “डेमोग्राफी” में बड़ा परिवर्तन आया है। आंकड़ों के मायाजाल में जहां एक और राष्टीय स्तर पर हिन्दू बहुसंख्यक है, वही राज्य स्तर पर 9 राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक है। परन्तु राज्य स्तर पर अल्पसंख्यक का नियम लागू न होने से, राज्य स्तर के हिन्दू को  अल्पसंख्यक के विशेष अधिकार से वंचित कर रखा है। उनकी धार्मिक आजादी , जान-माल की सुरक्षा को नजरअंदाज सा किया जा रहा है। इसी कारण राज्य स्तर पर पलायन की समस्या है। यदि जिला स्तर पर देखे तो बहुसंख्यक की स्तिथी और भी भयावह है।

इन्ही सभी कारणों के दृष्टिगत रख केंद्र सरकार को 1947 के अल्पसंख्यक के पैमाने को बदल केंद्र , राज्य व  जिला स्तर पर वर्तमान डेमोग्राफी के आधार पर अल्प्संख्यकता का पैमाना बनानां चाहिए। ताकि सभी को राज्य व जिला स्तर पर धार्मिक व व्यक्तिगत सुरक्षा प्रदान की जा सके। यदि आंकड़ों पर नजर डालें तो देश में  बहुसंख्यक का राज्य , जिला स्तर पर  उत्पीड़न व  पलायन बहुत मात्रा में हुआ है। जम्मू कश्मीर, पंजाब, असम, बंगाल , उत्तरप्रदेश जैसे राज्य इसके चंद उदाहरण है।

दस वर्ष में एक बार होने वाली जनगणना में आकड़ों के लिए हिन्दू बहुसख्यक की सभी जातियों को मिलाकर हिन्दू धर्म में शामिल कर लिया जाता है, परन्तु चुनाव के समय सत्ता के लिए बहुसख्यक को जातियों में बाँट ( दलित , जाट राजपूत , ब्राह्मण आदि ) अप्ल्संख्यक बना दिया जाता है।  इसका सीधा-सीधा नुकसान बहुसंख्यक को उठाना पड़ रहा है। उसकी सुरक्षा, धार्मिक आजादी को हानि पहुंचाई जाती है। पलायन हो रहा है। हिन्दू धर्म में वीरता, शौर्य व  पवित्रता के प्रतीक भगवा रंग को  आतंक से जोड़ बदनाम करने की कोशिश की जाती है।

आज देश व Tax Payers (टेक्स पेयर्स) के पैसे से अवैध घुसपैठिए  अल्पसंख्यक का दर्जे ले, विशेष सुविधाएँ भोग रहे है। वहीं सामान्य अधिकार प्राप्त राष्ट्रीय स्तर पर बहुसंख्यक अपने अधिकारों के लिए गिड़गिड़ाता सा नजर आ रहा है। देश की सरकार को इन बिन्दूओ पर भी विचार करना चाहिए।  तभी सबका साथ व सबका विकास संभव है।  हर भारतीय को प्रण  लेना होगा कि उसे  मिलकर हिंदुस्तान को हिन्दुस्तानियों का देश बनाना है न कि अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक का। जैसा कि  सत्ता के लिए नेता चाहते है,  इसी में हम सबकी भलाई है।

 

 

 

 

 

 

 

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