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जिन्दगी – गजल

दिल का दर्पण
दिल का दर्पण
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बिन मांगे जो मिली है, बिन चाहे जो खो जायेगी
दो तारीखें यादों की बन, जिन्दगी सो जायेगी

कुछ पाने के गुमां हैं और कुछ हैं खोने के मलाल
इक मढी तस्वीर है और क्या जिन्दगी हो पायेगी

हाशिये पर आ गये हैं दुनिया भर के मजमून
यूं ही सफ़ा-दर-सफ़ा कोरी जिन्दगी हो जायेगी

पास में रखने को कुछ है और न छोडने की बात
सांसों पर मयस्सर कहां तक जिन्दगी ढो पायेगी

इतनी यादों के पुल्लिन्दे अपने साथ ले कर न चलो
मुश्किल सफ़र होगा और बोझ जिन्दगी हो जायेगी

मोहिन्दर कुमार

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