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फरेबी जज्बात ……

Hum bhi kuch kahen....
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आदरणीय मंच संचालको , आदरणीय मित्रगण एवं प्रिय पाठको … बहुत दिनों बाद आज फिर से आपके सामने एक रचना लेकर आई हूँ ! कुछ व्यक्तिगत कारणों से मंच पर सक्रीय नहीं हो पा रही हूँ इसीलिए आप सबसे क्षमा प्रार्थी हूँ … उम्मीद करती हूँ आपको मेरी ये रचना पसंद आये ! इस मंच से बहुत कुछ सीखा है बहुत कुछ पाया है और यहाँ सदैव रहना चाहूंगी बस आप लोग हौसला देते रहें धन्यवाद !!!

what was my fault

रिश्ता जोड़ा हमने दिल की सांसों से ,

तुम खेलते रहे मेरे मधुर अहसासों से !

तुम करते रहे फरेब पाक ज़ज्बातों से ,

हम डूबते चले गए मन की गहराइयों से !

तुम्हारी तो ये आदत है खेल खेलने की ,

हम टूट कर बिखर गए कांच के आइनों से !

कभी सुबह-शाम की अजान से रहे तुम ,

अब अता होते हो तो मातमी अल्फाजों से !

दिल सजाए बैठा है ख्वाब जाने कितने ,

तुम गुजरते चले गए वक़्त के हाशियों से !

निकल पड़े हो ढूँढने कोई और खिलौना ,

दिल भरा नहीं अभी क्या मेरी बर्बादियों से !

************प्रवीन मलिक****************

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