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एक इश्क़ अनोखा

National issues
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पंकज और प्रिया की कहानी भी आम युवाओं से ही मिलती जुलती है,
जवां दिल का एक दूसरे के लिये धड़कना, निगाहों में एक दूसरे का इंतज़ार, होटों पर सनम का ज़िक्र और सपनों का एक हसीं संसार |
सब कुछ हकीकत थी कुछ न फ़साना था
एक लड़की थी एक दीवाना था
एक खुमार था जो इश्क़ था
कोई शुमार था जो मुश्क था
जज़्बात थे, अंदाज़ थे
हाथों में हाथ थे
साथ बिताया हर लम्हा, होने ना देता था कभी तन्हा
शबाब पे था वो इश्क़
बेशुमार थी वो मोहब्बत

कॉलेज अब ख़त्म हो चुका था और भाग्यवश दोनों को ही शहर में नौकरी भी मिल चुकी थी, पंकज ने सेल्स और मार्केटिंग का काम चुना वहीं प्रिया कंप्यूटर इस्टिट्यूट में शिक्षिका थी | रोज़ एक दूसरे से मिलना और यादों के समंदर में गोते लगाना जारी था |

सब कुछ सही था, अच्छा था और सच था, कि प्रिया ने ये खबर पंकज को सुनाई, जिससे सुन कर उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गयी | हर प्रेमी युगल की कहानी इतनी सरल नहीं होती, जी हाँ इश्क़ असल में आग का दरिया ही होता है और डूब के पार जाना हर किसी के बस में नहीं होता |
“घरवाले मेरी शादी करवाना चाहते हैं, कल मुझे लड़का देखने आ रहा है ” प्रिया ने सिसकते हुए कहा |
पंकज खामोश था पर मन में तूफ़ान उफान पे था, अपने जज़्बातों को काबू में करते हुए उसने पूछा, ” तो तुमने क्या सोचा है?”
प्रिया से अब रुका ना गया और वो फूट फूट कर रोने लगी, आज शायद वो हुआ जो एक बुरे ख़्वाब सा था पर था यथार्थ |
पंकज ने कुछ रास्ता निकलने के साथ आज उससे विदा किया |
आज की शाम में सूरज के साथ साथ कुछ अरमान भी ढल रहे थे और रात भयावह काली हो चली थी |

दो दिन बाद पंकज प्रिया से मिला और जो सवाल उसके मन में काँटें की तरह चुभ रहा था प्रिया से उसने साझा किया. “तो क्या हुआ ? तुम मिली उससे ? कौन है वो ? तुमने हाँ तो नहीं की ?…”
प्रिया पंकज के सवालों की बढ़ती हुई कड़ी पर रोक लगते हुए बोली, “हाँ मिली तो, पर अभी जवाब नहीं आया है वहाँ से” |
पंकज की घबराहट अब चरम पर थी, “तुमने हमारे बारे में उसे बोला क्यों नहीं, तुम मना कर दो अपने घर वालों से” |
प्रिया ने समझाते हुए कहा, “इतना आसान नहीं है, मेरे घरवाले प्रेम विवाह के पक्ष में कभी नहीं रहे हैं, और मेरा उनसे इस बारे में बात करना मुमकिन नहीं है ”
“तुम किसी भी तरह इस रिश्ते से इंकार कर दो मैं कुछ करता हूं” पंकज ने प्रिया को समझाते हुए कहा |

पंकज हैरान और परेशान दोनों ही था और रास्ते के नाम पर उसके पास अब अपने और प्रिया के घरवालों से बात करने के आलावा कोई और चारा ना दिख रहा था | दोनों ही नौकरीपेशा थे और एक ही जाती से थे, समस्या बस ये थी कि पंकज अभी २० साल का था और शादी करने लायक होने के लिये उसे एक और साल का इंतज़ार करना था |

उधर प्रिया के ऊपर उस एक मुलाकात का कुछ अलग ही असर हुआ थाऔर वो खुद को पंकज से थोड़ा अलग सा महसूस करने लगी थी | नए शख्श को और जानने पहचानने के लिये उसने अब फ़ोन पर बात करना शुरू कर दिया था और अगली मुलाकात का वक़्त और जगह तय कर चुकी थी |

पंकज से मिलना जुलना अब लगभग बंद हो चुका था प्रिया का और उस नए शख्श से मुलाकातों का सिलसिला एक अलग ही रिश्ते को जन्म दे रहा था | पंकज को ये समझना मुश्किल हो रहा था और ऐसे किसी खयाल को भी वो अपने पास नहीं आने देना चाहता था | दिन बीत रहे थे और पंकज की बेताबी भी बढ़ती जा रही थी, पंकज काफी कोशिश करता प्रिया से मिलने को, उससे बात करने को पर अब सारी ही कोशिशें किसी अंजाम तक पहुँचने का नाम भी नहीं ले रहीं थी | प्रिया शायद अब तक अपनी पुरानी मोहब्बत से निकल कर नए रास्ते पर प्रसस्त हो चुकी थी |

रोज़ हज़ारों खयाल पंकज के दिल ओ दिमाग को झकझोर रहे थे, कोई रास्ता ना देखते हुये पंकज ने वो फैसला लिया जो शायद उसके इस ज़ख्म को नासूर बना सकते थे | हिम्मत जुटा कर वो आगे बढ़ाऔर अपनी बाइक की ओर लपका, पंकज के मन में भी वही खयाल था जो ज्यादातर आशिकों के दिमाग में मोहब्बत के नाकाम होने पर आता है, जी हाँ अपने इश्क़ और आशिक़ी का गला घोटने का | पंकज ने पास के किराना की दुकान से फिनायल की बोतल खरीदी और प्रिया के इंस्टिट्यूट की तरफ आंधी की रफ़्तार से मन में कटुता लिये हुए बढ़ चला | पंकज का गुस्सा सातवें आसमान पर था, मन में रुसवाई की आग थी दिमाग पर अब उसका काबू ना था और शायद अपनी बाइक की रफ़्तार पर भी | इस्टिट्यूट के नज़दीक पहुँचते ही पंकज को सामने से आती हुई बस ने ज़ोरदार टक्कर मारी और एक दर्दनाक हादसे का शिकार हो गया | हादसा इतना दर्दनाक था कि पंकज अस्पताल भी ना ले जाया जा सका |

इस खबर को प्रिया के कानों तक पहुँचने में देर ना लगी और अपने पंकज कि मौत की खबर सुन कर वो बुरी तरह से टूट चुकी थी, प्रिया को अब बस ये पता था कि पंकज अब नहीं रहा | साथ बिताये हुये लम्हें अब प्रिया के आँखों के सामने थे, वो खुद को संभालना चाहती थी पर शायद उसकी मोहब्बत की सच्चाई आज उसको खुद को भूलने पर मजबूर कर रही थी | प्रिया अब पूरी तरह से टूट चुकी थी और उसने खुद को पंकज के इश्क़ में फना होने का फैसला लिया |

जो चीज़े असल ज़िन्दगी में मुश्किल होतीं है वो शायद इश्क़ में आसान हो जाती हैं |

प्रिया ने जीते जी पंकज की मोहब्बत को करीब से जाना मगर उसकी नफ़रत… उसकी नफ़रत से प्रिया का सामना ना होना ही किस्मत को मंज़ूर था |

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