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सपनों की पोटली बांधे हुए इस देश में रोज़ लाखों लोग अपने घर से बाहर बाहरी दुनिया में कदम रखते हैं, अमीर आदमी किस्मत ले के पैदा होता है और मध्यम वर्ग का व्यक्ति मेहनत से ही अपनी किस्मत की सीढ़ियां बनाता है | ऐसे ही तीन युवक अपने गाँव से अपने हाँथों की लकीरों को बदलने के जुनून से शहर की और अग्रसर हुए | बारह्वी की परीक्षा पास करके शहर जा कर कॉलेज में अपना दाखिला करवाया | इन तीनो युवकों में समानता के नाम पर गरीबी और घर में रह रहे छोटे भाई-बहनों की जिम्मेदारी एवं कन्धों पर उनके सपनों का बोझ समान था | अलग-अलग गाँवों से आकर इनका मिलना एक संजोग ही था और कॉलेज में विषय भी राजनीतिक शास्त्र था | मेहनत, मौज, मस्ती के साथ तीन साल का कॉलेज का सफर समाप्त होते ही नौकरी की मगजमारी में तीनों ने वक़्त के साथ समझौता किया, और वैसे भी हमारे देश में युवाओं के मनोबल को चित्त करने के लिये भ्रष्टाचार और आरक्षण नाम के साँप हमेशा से ही अपना फन फैलाये खड़े रहते हैं | एक महीना हो चुका था नौकरी ढूंढते हुए और तीनों को ही अपने सपने धीरे-धीरे धुंधले होते हुए से दिखाई दे रहे थे |
शाम को अमित के घर पहुँचते ही दीपक ने उत्साहित होकर पूछा, ” बात बानी क्या?”
अमित ने असहमति में सर हिलाते हुए पंकज से उसके साक्षात्कार के बारे में पूछा,
पंकज-“होना क्या था, एक लाख रुपये क्या अपनी किडनी बेच के लाऊँगा “|
“पैसे भी खत्म हो रहे हैं, घर से भी काफी दबाव है, कुछ और दिन ऐसा ही रहा तो”… दीपक की बात काटते हुए पंकज बोला, “भाई चिंता मत कर सब ठीक हो जायेगा”,
” क्या ठीक हो जायेगा, महीने भर से ऊपर हो चुका है अब और हम” नम आँखों के साथ दीपक ने अपनी बात खत्म करने से पहले ही खुद को रोक लिया |
इस देश में अनपढ़ होना उतनी बुरी बात नहीं है जितना कि पढाई के बावजूद नौकरी न मिलना |
कमरे में मुर्दाघर समान सन्नाटा पसरा हुआ था |
बेरोज़गारी एक अभिशाप है, उसपर गरीबी जले पर नमक सामान, कोई रास्ता ना निकलता देख दीपक ने कुछ ऐसा सुझाव दिया जिसे सुन कर पंकज और अमित दोनों ही सहम गए और एक ही स्वर में नाकार दिया |
” नहीं नहीं, तू पागल हो गया है क्या,” अमित ने नकारते हुए ऊँचे स्वर में बोला | पंकज ने भी अमित का साथ देते हुए कहा,” हमारे हालात गलत हैं पर ऐसा करना जुर्म है, इतनी पढाई लिखाई के बाद ये” |
दीपक ने बात काटते हुए कहा, ” पैसे नहीं है, नौकरी नहीं है, घर का किराया देना है, खाना पीना तो छोड़ो अब तो कोई उधार भी नहीं देगा हमें, गाँव में बैठे माँ-बाप भी इसी उम्मीद हैं कि कब हम उन्हें पैसे भेजेंगे, कोई और रास्ता है किसी के पास तो बताओ वरना रस्सी खरीद लातें हैं बचे हुए पैसों से और पूरा किस्सा ही खत्म कर देते हैं” |
अमित ने फिर भी नकारते हुए कहा, “पर ये गलत है और हम ऐसे बिलकुल नहीं है” | दीपक ने गीले स्वर में बोला, “माना ये गलत है पर अब और कुछ नहीं हो सकता” |
हालात को देखते हुए पंकज ने ना चाहते हुए भी दीपक के साथ हामी भर दी, और बोला, “पर ये होगा कैसे”?
अमित ने पंकज कि तरफ अचंभव से देखा और कमरे से बहार निकल गया |
दो दिन बाद तीनों ही शहर से २०० किलोमीटर दूर एक छोटे से गाँव के लिये किराये कि गाड़ी में रवाना हो लिये |
गाँव पहुँचते ही तीनों ने पंचायत घर के पास ही छोटा सा टेंट लगाया | भारतीय गावों से अगर आप अवगत हैं तो आपको पता ही होगा कि गाड़ी और टेंट देखते ही लोगों कि भीड़ अपने आप ही जुट जाती है | और यहाँ भी ऐसा ही हुआ |
देखते ही देखते सेकडों लोग जुट गए, अमित, दीपक और पंकज ने भी अपने बैग से कुछ कागज़ और लैपटॉप निकलते हुए लोगों की भीड़ को अपना परिचय देना शुरू किया, खुद को सरकारी बाबू बता कर और अंग्रेजी के कुछ शब्दों का इस्तेमाल कर अब तक इन तीनों ने लोगों का भरोसा जीत लिया था |
“भारत सरकार ने हमें यहाँ भेजा है, आपके गाँव में सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली कई योजनाओं का लाभ आप सब को नहीं मिल पाता है, हम उन्हीं योजनाओं के अन्तर्गत आप सभी को लाभान्वित करनवाने आयें हैं, इस योजना के तहत आप सभी को इस फार्म को भरना है और महज १० रुपये देकर आप इस योजना के भागीदार बन सकते हैं”| दीपक ने आगे बोलते हुए कहा, ” इसके बाद आपका हम कंप्यूटर पे पंजीकरण कर देंगे और जिससे आप अपनी जमा की हुई राशि का दोगुना पैसे तुरंत पा सकेंगे | कंप्यूटरीकृत पंजीकरण में महज ४ से ५ घंटे का समय लगेगा और हाँ एक बार में कोई भी व्यक्ति एक पंजीकृत नाम पर १०००० से ज्यादा की राशि नहीं जमा कर सकता” |
गाँव वालों के कुछ प्रश्नों के जवाब देकर तीनों ने जल्द ही उनका भरोसा जीत लिया, ८००० की आबादी वाले गाँव में लोगों को अपने पैसे दुगने करने की मानो होड़ सी लग गयी थी | लोग अपने एवं परिवारजनों के नाम पर पैसे जमा करने लगे थे |
पहला घंटा बीतते ही दीपक ने रामकिशन को बुलाया और बाकी के खड़े हुए लोगों को संबोधित करते हुए कहा,” रामकिशन ने सबसे पहले पैसे जमा किये थे और सरकार द्वारा इनका पंजीकरण मंजूर हो चुका है,” कहते हुए रामकिशन को उसके २००० के बदले ४००० की राशि प्रदान की | ये देख कर गाँव वालों की उत्सुकता चरम पर पहुँच गयी और पूरे गाँव में ये बात जंगल में लगी आग की तरह फ़ैल गयी, लोग खेत खलिहानों से आकर आपने पैसे दुगने करने के लिये जुटने लगे |
शाम से पहले करीब २५० लोगों ने अपने पैसे तीनों के पास जमा कर दिये थे जिनमें से करीब २० लोगों की राशि अभी तक दुगनी हो चुकी थी |
५ बजते ही दीपक ने कहा, ” आपके गाँव की ही तरह दूसरे गावों में भी ये काम चल रहा हैं इसीलिए आज काफी कम पंजीकरण मंज़ूर हो पाये, बहरहाल बाकी सभी फॉर्म कतार में हैं और कल सुबह सबसे पहले इसी गाँव के पंजीकृत फार्म को वरीयता दी जाएगी, हम ६ बजे तक फार्म भरेंगे और पैसे जमा करेंगे” |
गाँव वालों ने बिना कुछ सोचे समझे अपनी कमाई इन तीनों को सोंप दी, शाम ६ बजे तक करीब ५०० लोगों ने फार्म भरा, जिसके बाद दीपक ने आगे की कार्यवाही अगले दिन के लिये टाल दी |
कतार अब भी थी पर तीनों ने ज्यादा लालच ना दिखाते हुए अपने टेंट को समेटना शुरू किया, गाँववालों की आँखों में चमक थी और उम्मीद थी अपने पैसों को दो गुना होते हुए देखने की |
पैसे लेकर और कल फिर आने के वादे के साथ तीनों ने इस गाँव से पलायन किया |
गाड़ी में बैठ कर तीनों की शक्लों पर चमक दूर से ही देखी जा सकती थी, जो काम करने से पहले अमित और पंकज को ग्लानि महसूस हो रही थी अब इतने पैसे देख कर ख़ुशी में तब्दील हो चुकी थी | गाँव वालों को कल का इंतज़ार था और अमित, दीपक और पंकज को जल्द से जल्द शहर वापस लौटने का |
उन्हें इस बात का कतई भी अफ़सोस ना था की वो तीनों एक समय पर जुझारू, मेहनती और ईंमानदार युवा हुआ करते थे पर आज ‘ठग’ बन कर रह गये हैं |
पैसों की ख़ुशी में शायद गाड़ी चलते हुए दीपक को आगे से आता हुआ ट्रक दिखाई ना दिया और जब दिखाई दिया तब तक बहुत देर हो चुकी थी, उस रास्ते पर अब मूर्छित अवस्था में एक गाड़ी, तीन लहूलुहान युवक और गरीबों के खून पसीने की गाढ़ी कमाई बिखरी हुई थी |
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