Menu
blogid : 5803 postid : 1332644

दोषी कौन?

National issues
National issues
  • 36 Posts
  • 16 Comments

सुल्तानपुर के एक छोटे से कस्बे में एक प्रेम कहानी अपने यौवन पर थी | मजहब की दीवारों को तोड़ कर दानिश और रीमा का प्रेम उनके अलग-अलग धर्मों से परे, काँटों के बीच खिले गुलाब सा महक रहा था | हर प्रेमी युगल की तरह, ज़िन्दगी से कुछ पल चुरा कर हसीं लम्हों में तब्दील करना रीमा और दानिश की भी मानो फितरत सी हो चली थी | पर आज शायद इस इश्क़ के अंजाम का दिन था, कहते है कि इश्क़ और मुश्क़ छुपाये नहीं छिपता | रीमा के पड़ोसी आकाश ने आज बाजार में इनको साथ घूमते हुए देख लिया, खबर थी ये और फैली भी जंगल में आग की तरह | बस कुछ ही मिनट गुज़रे थे कि लालबाग़ के बाज़ार में लाठी, डंडे और तलवारों से लैश एक जन समूह पहुँच गया | दानिश को अब तक सारी बातें समझ में आ चुकी थीं, आनन फानन में उसने भी अपने मोबाइल से कुछ नंबर लगा दिये | बात अब किसी की बहन या पड़ोसी की नहीं बल्कि धर्म और संप्रदाय तक पहुँच चुकी थी | दोनों ही तरफ के लोग लालबाग़ के बाज़ार में अब मौजूद थे, इस भीड़ ने ना आव देखा ना ताव और एक दूसरे के ऊपर अपना वर्चस्व स्थापित करने की ज़द्दोज़हद शुरू कर दी | तनाव के माहौल की खबर पास के पुलिस स्टेशन तक पहुँच चुकी थी | मौके पर पहुँचते ही आलम ये था कि असंख्य उपद्रवियों को काबू में लाने के लिये मुट्ठीभर पुलिसकर्मी नाकाफ़ी साबित हो रहे थे | धर्म का नकाब पहने ये लोग पुलिस पर भरी पड़ रहे थे | पुलिसकर्मी खुद को बचाने के साथ ही भीड़ को तीतर-बितर करने में लगे हुये थे | इतने में भीड़ से फेंका गया पत्थर एक हवलदार के सर पर जा लगा | खून की धार उसके माथे से रिसने लगी थी और वो लहुलुहान होकर ज़मीन पर गिर गया | कोई साथी पुलिसकर्मी मदद को पहुँचता उससे पहले ही कुछ और पत्थर उसके शरीर से लहू प्रवाह तेज़ कर चुके थे | पुलिसकर्मियों के लिये साथी की मदद ज़मीर की बात थी वहीं स्थिति को काबू में लाना फ़र्ज़ की, और इस ज़मीर और फ़र्ज़ की लड़ाई ने हवलदार के बहते खून से कोई वास्ता ना दिखाया | और पुलिसकर्मियों के मौके पर पहुँचने के बाद स्थिति तो नियंत्रण में आगयी थी पर उस हवलदार की उसकी साँसों से लड़ाई अब ख़त्म हो चुकी थी |

शाम तक हवलदार की लाश उसके घर पहुँच चुकी थी, पत्नी दहाड़े मार कर अपने माथे का सिन्दूर मिटा रही थी, तभी शोर सुन कर दूसरे कमरे में सो रही मुन्नी की आँखे खुली और वो दौड़ते हुये अपने स्कूल के बस्ते से कुछ निकाल कर बाहर की तरफ दौड़ी और ज़मीन पर लेटे हुए अपने पिता की तरफ देख कर बोली “पापा, देखो आज मुझे चित्रकला प्रतियोगिता में प्रथम आने पर ये मिला” |

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply