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सफर: ऑरकुट से फेसबुक तक

National issues
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ऑरकुट, 90 के दशक में जन्मे लोगों के लिये यह शब्द बहुत ही अपना सा है। इस शब्द के साथ जुड़ी हुई कहानियाँ आज भी लोगों के चेहरे पर मुस्कान छोड़ जाती हैं। हाथों की उँगलियों से दिल तक पहुँचने का यह सफर नया तो था ही साथ में उस दौर के लिये बहुत ही अनोखा भी था। मैं शिवानी, दसवीं कक्षा में थी जब दोस्तों के कहने और उनसे काफी सुनने के बाद इंटरनेट कैफ़े जाकर अपना ऑरकुट का प्रोफाइल बनाया था। कैमरे वाले फोन अभी उतने प्रचलित नहीं हुए थे, अपने बारे में लिखने के बाद खुद की तस्वीर न होने पर गूगल से ऐश्वर्या राय की एक फोटो को अपनी प्रोफाइल पिक्चर बना ली। स्कूल के तमाम लोगों को रिक्वेस्ट भेजने और उनकी प्रोफाइल देखने के बाद खुद को भी उन सब की दौड़ में साथ होने जैसे महसूस किया।


orkut facebook


दिन गुजरे और ऑरकुट से समय की साझेदारी बढ़ने लगी। कुछ जाने-पहचाने चेहरे थे, तो कुछ अनजान भी। उम्र का पड़ाव ही था वो जिस कारण अनजान लोगों को और करीब से जानने का कौतुहल मचा हुआ था। उन्हीं कुछ अनजान लोगों की रिक्वेस्ट के बीच छुपी थी, सम्राट उर्फ़ सैमी की रिक्वेस्ट। प्रोफाइल पिक्चर अच्छी लगी, खुद के बारें में ‘cool dude’ लिखना उस समय काफी लोकप्रिय था। यह मेरे लिये काफी था किसी अनजान से बातें करने के लिये।


जो आज भी नहीं बदला, वो है पहला शब्द ‘hi’। इस छोटे से शब्द से न जाने कितनी ही कहानियों ने जन्म लिया है। धीरे-धीरे बातों का सिलसिला आगे बढ़ा, तो पता चला कि वो कानपुर का रहने वाला था, बारहवीं कक्षा में केंद्रीय विद्यालय का छात्र था। हालाँकि मैं भोपाल में थी और केंद्रीय विद्यालय ही हमारे बीच एक समान बात थी अभी तक। इंटरनेट अभी भी आम बात नहीं थी सबके लिये। बात खत्म करने से पहले अगली बार कब ऑनलाइन आ पायेंगे, यह भी एक एहम मुद्दा हुआ करता था। बातों का दौर जारी था और इसी बीच इंटरनेट पर एक और बड़ा बदलाव हुआ, जिसको हम फेसबुक के नाम से आज जानते हैं।


फेसबुक ने जिस रफ़्तार से लोगों को अपनी तरफ़ खींचा उसी रफ़्तार से ऑरकुट से लोगों ने नाता तोड़ना शुरू कर दिया था। मैं भी उनमें से एक थी। एक-दो साल में बहुत कुछ बदल चुका था। मल्टीमीडिया फ़ोन बाज़ार में अब थोड़े सस्ते दामों में मौजूद होना शुरू हो गये थे। Nokia सबकी पहली पसंद था। मेरे घर में भी एक नया फ़ोन आया था, जो पिताजी के पास रहता था और कुछ समय के लिये ही हम भाई-बहनों को मिलता था। अब फेसबुक पर जाने पहचाने लोगों से जुड़ना शुरू हो गया था और ऑरकुट किसी फ़ीकी चाय जैसा हो चुका था। सम्राट कॉलेज के दिनों में था और शायद ज़िम्मेदारियों के बोझ में कुछ इस कदर उलझ चुका था कि वो इस बदलाव का हिस्सा अभी तक तो नहीं बना था। कुछ समय तक फेसबुक पर उसको ढूँढा और फिर कई और नये लोग, नयी बातों ने अतीत को धुंधला करना शुरू कर दिया।


कॉलेज बहुत कुछ बदल देता है, जो कल तक दिल के करीब हुआ करते थे, अब वो कभी-कभी रात की तन्हाई के साथी बनकर रह जाते हैं। साल बीत गये और मैं इंजीनियरिंग के तीन साल पूरे कर चुकी थी। एक दिन फोन में फेसबुक के नोटिफिकेशन में फ्रेंड रिक्वेस्ट आयी, नाम था सम्राट। यह वो पल था, जब मैं एक झटके में ही पांच साल पीछे चली गयी। फिर से जुड़ने के साथ ही बहुत से सवालों ने भी जवाब माँगे। बातें बढ़ी, तो पता चला कि सम्राट भी उसी शहर में नौकरी करता है, जहाँ मैं पढ़ रही थी।


फिर क्या था, एक मुलाकात तो बनती थी। आम लोगों की तरह हमने भी एक कैफे में मिलना तय किया। ये वो पल था, जैसे आपकी कोई चिट्ठी गलत पते पर चली जाये और उस गलत पते पर सही इंसान से आपकी मुलाकात हो जाये। ये वो पल था जब कुछ बहुत पुराना आपको फिर से मिल जाये। ये वो पल था जो शायद बयां भी नहीं किया जा सके।


ख़ैर, हम मिले, ज़िन्दगी में होते हुए बदलावों को चाय की चुस्कियों में पीते गये। दो घंटे की इस मुलाकात में मैं फिर से ज़िन्दगी से जुड़ी हुई सी महसूस कर रही थी और सबसे ज्यादा ख़ुशी इस बात की थी कि यह एक पुराने दोस्त से हुई मुलाकात सी थी, जिसको और किसी रिश्ते से जोड़ने का ख्याल ना मैंने पाला और ना ही उसके जेहन में बसा। फोन पर बातें अब आम हो चली थी। whatsapp का ज़माना आ चुका था। एक दिन यूं ही इधर-उधर की बातों के बीच उसने कुछ ऐसा कहा, जिसने मुझे काफी कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया। बात यह थी कि उसकी शादी तय हो चुकी है, तीन महीने बाद है। मैं खुश थी और शायद थोड़ी हैरान परेशान भी।


ये ज़िन्दगी का वो पल होता है, जब हमें कुछ भी सोचने से तौबा करना चाहिये, क्योंकि हम जितना सोचते हैं, उतने ही उलझते जाते हैं। आज उसकी शादी थी और मैं एक दोस्त को सफल नए जीवन की बधाई दे कर आ रहीं हूं। इंटरनेट पर होते धोखों को देखते हुए शायद मेरे हिस्से में कुछ अलग ही था। कुछ यादगार मुलाकातें, कुछ कही-अनकही बातें, शायद उम्र भर का साथ और बहुत सी हसीन यादें।

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