कुछ कही कुछ अनकही
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क्या मिला भेद ये छुपाने में
प्यार मिलता नहीं ज़माने में
देर हुई बहार के आने में
बीती जिंदगी फरेब खाने में
वक्त गुजर गया होंसला जुटाने में
हाले दिल तुझे सुनाने में
चैन कुछ कुछ सुकून दे देता
क्या कमी थी तेरे खजाने में
है यही सच मेरे फ़साने में
देर हुई खुद को सबक सिखाने में
लुत्फ़ आने लगा जख्म खाने में
जिंदगी तुझको आजमाने मैं
हैं वही शोखियाँ वही अदाएं
आज भी तेरे मुस्कुराने में
दिल भी नहीं पिघला जालिमों का
घर किसी गरीब का ढहाने में
(c )
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