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दायरे रिश्तों के ……….

कुछ कही कुछ अनकही
कुछ कही कुछ अनकही
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दायरे रिश्तों के

दायरे रिश्तों के न छोटे होने देना …..
मुस्कुराहटों पर पहरे न कभी लगने देना …
आँखों में सपनों के झुरमुट आबाद सदा रखना ….
तारों को छूने के अरमान सजाये सदा रखना ….
अहसासों पर न पड़ने देना कभी मटियाली छाया कोई …
वसीयतें हैं यह वो ,मोल न जिनका कभी लगा पाया कोई …
खिलखिलाते चेहरों के पीछे छिपी होती हैं उदासियों की परतें कई …
हुआ हैं यूँ भी कभी कभी कि ,खुशियां खुद ही राहें अपनी भूल गई ….
बीतते पलों का बस इक दरिया ही तो है जिंदगी …
रिश्तों के पुल बना ,,पार जाना या फिर डूब जाना ही तो है जिंदगी …
जाने क्यूँ धड़कनों की आवाज़ पर यादों ने दी है दस्तक आज ..
यूँ लगा जैसे तारों की चुनर ओढ़ चाँद जमीन पर थिरक रहा आज ….
जिन राहों पर फूल मिले उन का शुक्रिया ,जिन पर साथ चले कांटे उन का भी शुक्रिया …
राहें तो राहें हैं उनका क्या कसूर ,, थे जो भी हम सफ़र उन खुशियों का भी आहों का भी शुक्रिया …….

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