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आईना सब को दिखाता है (कविता)

कुछ कही कुछ अनकही
कुछ कही कुछ अनकही
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आईना सब को दिखाता
वक्त सचमुच बेरहम है

बारिशों का है बहाना
जाने क्यों आँख नाम है

आईने से खौफ मत कर
तोड़ता सब के भरम है

सच कहां सब है छलावा है
फिर भी क्यों खो जाते हम है

उलझे जो निकले भला कब
जुल्फ में तेरी वो ख़म है

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