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अक्सर …………….

कुछ कही कुछ अनकही
कुछ कही कुछ अनकही
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अक्सर

अक्सर ………………..
कई लम्हे
बेमानी .,बेपता ,बेस्वाद
बिन चेहरे के
बेनिशां से
रूह की ज़मीं पर
खामोश
उदास
बिन आहट के
बिना कोई निशां छोड़े
चुपके से गुजर जाते है
गोया , गुजरा हो
सेहरा के रेत पर से कोई
अक्सर …………….
गुजरे हुए लम्हे
पुराने वक्त की यादों का
पुलिंदा अपनी झोली में ले कर चले आते है
जिसमें
होते हैं
उदासियों के सूखे पत्ते
अश्कों की बारिशें
सही गलत फैसलो के कुछ कांटें कुछ फूल
कुछ गलतियों के शूल
बिछड़े अपनों के चेहरे
सामने ले आते हैं
फिर से उस
उस दर्द को जीने को मजबूर कर देते है
जो दिल के कोने में कही सो रहा था
अक्सर
वो लम्हे जो धुंध में हैं अभी
अपनी एक झलक दिखा कर फिर धुंध में खो जाते हैं
मृगमरीचिका की मानिंद
अपने पीछे बुला कर
एक ऐसे
अधबुने पुल पर ला कर छोड़ देते हैं
जिसके आगे कोई राह नही
कोई गली नहीं
बस घनी धुंध है
और हम हैं
खोये खोये से

सरोज सिंह …….

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