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आस की पतंग को /ऐतबार की डोर से/ थामे सदा रखना …….ग़ज़ल (contest )

कुछ कही कुछ अनकही
कुछ कही कुछ अनकही
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ऐतबार की डोर से पतंग आस की थामे रखना
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दिल के किसी कोने में, मखमली अंधेरों में ,चाहों को आबाद सदा रखना /

रंग सपनों में भरने की खातिर सतरंगी कूची एक साथ सदा रखना /
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ख्यालों को अपने आसमानों में उड़ने को आज़ाद सदा रखना /
आस की पतंग को ऐतबार की डोर से थामे सदा रखना /
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न जाने कब छुपी हुई सी चाहतें ,वो सतरंगी सपने झूलते हुए हवा के परों पर /

इक दिन दस्तक देने आ धमके,रंग भर दे सुबह सवेरों में ,रातों में चांदनी भर दे /

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दिल के किसी कोने की गहराइयों में छुपी इन चाहतों से ,जज्बातों से
गाहे बगाहे मुलाकातों की रवायत एक सदा बनाये रखना /

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भूल कर भी कभी इन सपनों को ,इन चाहतों को भूल न जाना /
आस की पतंग को ऐतबार की डोर से थामे सदा रखना /
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रचियता ——–सरोजसिंह

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