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हरी वर्दी की ठंडी छाया
बिटिया थी जब सैनिक की …
डरती थी कितना युद्ध के नाम से …….
बन्दूक और गोलियों की आवाज़ से ……
पर …….
.गुजरते वक्त के साथ …….
छावनी दर छावनी ……..
पोस्टिंग दर पोस्टिंग ………..
बीते दिन जीवन के
साये में हरे रंग के ……
था उस OG वर्दी में जादू कुछ ऐसा ……
न पाया किसी और रंग में फिर जैसा ….
हर खतरे, हर मुसीबत में ..
बन कर दीवार खड़े रहते जो …..
जाने कब बन गये इतने अपने वो ……
मिट गई दहशत वो गोलियों ,बंदूकों की …..
बचपन से जो कोने में मन के छिपी बैठी थी ……..
आया फिर वक्त जीवन साथी को चुनने का ………
बन कर पत्नी गर्व से एक सैनिक की .
चल पड़ी राहों पर एक नए जीवन की
सैनिक की बेटी से सैनिक की पत्नी बन ……
निभाने थे फ़र्ज़ कुछ नये ………
सुहाना रहा सफर कभी ………
तो मिले कुछ कठिन मोड़ कभी ….
मिली बहुत रौनकें कभी …
तो आये तन्हाई के कुछ साल कभी …….
छावनी दर छावनी ……..
पोस्टिंग दर पोस्टिंग ……
पहाड़ों की ऊँचाइयों में बनाया आशियाँ कभी …..
तो जा बसे सागर के किनारे कभी …….
कभी महलों जैसे घरों में बनाया ठिकाना .
तो कभी छोटी बाशा(टेम्पररी आर्मी हाउस ) में परिवार बसाया अपना …….
हरी वादियाँ मिली कभी ………
कभी तो बर्फ की चादरें थी ……….
घर से दूर थे बहुत साथ अपनों की यादें थी ……
और संग सदा हरी वर्दी की ठंडी सुरक्षित छाया थी …….
आँखों में न ,होंठों में शिकवा न कभी आने दिया ………..
मुस्किल हुई राहें कभी तो पत्थर खुद को बना लिया …..
थक गये कदम कभी जब .. कंधो का अपने सहारा एक दूजे को दिया …….
यूँ ही चलते चलते इन राहों पर सफर यह जीवन का कटता रहा …….
फिर आया वक्त नन्हे मुन्नों की नई उड़ानों का ………
कुछ हमारे अरमान, कुछ उनके सपने सच होने का ………
सैनिक के बेटे ने जाने कब पाल लिया था एक सपना ………
OG वर्दी पहन बनना एक सैनिक ही है …….
यही लक्ष्य बना लिया था उसने भी जीवन का ..
कर स्वीकार यह फैसला ख़ुशी ख़ुशी ……..
भेज दिया दिल के टुकड़े को उन्ही राहों पर ……
जो अपनाई थी गर्व से अब तक …………
उमड़ रही मन में भावनाएं कैसी कैसी न जाने …
पर सबसे उपर है बस एक ही बात ……..
जीवन है श्रेष्ठ कितना सैनिक का ……..
यह देख लिया जब बन कर बेटी और पत्नी …..
अब फिर उन्ही राहों के कुछ और पड़ाव बेखने है …….
रगों में कहीं गहरे समाये हुए ……..
इस वर्दी के बंधन का साथ दूर तक निभाना है ……..
बहुत दूर तक निभाना है ……
………..
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