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खोली खामोशियों ने अपनी जुबां जिस दम…. शेरो /शायरी ….(contest )

कुछ कही कुछ अनकही
कुछ कही कुछ अनकही
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खोली खामोशियों ने अपनी जुबां जिस दम
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बना लिया अपना ,जिन्दगी की मुश्किलोँ को जिस पल से मैँने..
दे गई न जाने कितनी नई राहोँ का पता, मेरे ही रास्ते की ठोकरें मुझे ..

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दीये हैं अलग अलग तो क्या हुअा ,लौ तो सभी की एक है..
हो शमा चाहे किसी भी रगँ की ,नूर हर शमा का तो एक है..

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छु लिया तेरी साँसोँ ने मुझे जिस पल ,तोड़ दी मेरी परवाजोँ ने सारी हदेँ उसी पल..
मिट गये सारे शिकवे जुदाइयोँ के उसी दम , खोली खामोशियोँ ने अपनी जुबाँ जिस दम………

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देख लिया नूर ये तेरे चेहरे का जिसने ,वो बस तेरा हो गया।
क्या जीना क्या मरना उसका फिर ,पता तेरा जिसने पा लिया।।

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रखना खुले दरवाजे ये दिलोँ के ,खिड़कियां वो दुअाअोँ वाली ..
बरसा दे क्या पता किस घड़ी, नेमत अपनी वो मुहब्बतोँ वाली
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गहरे इस समन्दर की छोटी सी सिर्फ एक बूँद नहीँ हूँ मैँ..
समेट ले कभी खुद मेँ सारे समन्दर को भी जो, ऐसी एक बूदँ हूँ मैँ………

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