कुछ कही कुछ अनकही
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ख्वाहिशों का खाली सागर
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चला था वो सु-ए मंजिल बड़ी हसरतों से /
क्या थी खबर हर मोड़ पर पड़ेगा वास्ता ठोकरों से /
सफर के आगाज़ में थे आँखों में ख्वाब फूलों के ,कलियों के/
अंजाम तक पहुंचे तो बस जख्म थे कुछ और काँटों का साथ था /
बड़ा नाज़ था अपने चेहरे की मुस्कान पे जिसको /
अश्कों से धोना पड़ता है अब रोज़ अपना चेहरा उसको /
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