कुछ कही कुछ अनकही
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गैर हुई अपने ही गावं की पगडंडिया
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काँटों ने दी है चुभन तो क्या नया है /
जख्म जब देने लगे फूल भी ,यह चलन नया है
वो जो गैर थे उनसे शिकवा करना क्या /
छुड़ाने लगें दामन जब अपने ,यह चलन नया है /
जलती धूप ने दी तपिश अगर तो क्या नया है/
बरसती नहीं अब सावन की बदलियाँ भी ,यह चलन नया है /
अजनबी थी शहरों को जाने वाली सड़कें तो क्या नया है /
गैर हुई अब अपने ही गावं की पगडंडियां भी यह चलन नया है /
पत्थर हैं का तो दस्तूर था चोट पहुँचाना इसमें क्या नयाहै /
पत्थर बन गई अब नज़ाकतें भी वज़ूद अपना बचाने को , यह चलन नया /
अजनबी था ,था पराया भी यह शहर क्या इसमें क्या नया है /
पराई हो गई अब तो हवाएं भी यहाँ की यह चलन नया है /
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