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जख्म पुराने कब भरते है …

कुछ कही कुछ अनकही
कुछ कही कुछ अनकही
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रोज भरम दिल में पलते हैं
दिल की बातें दिल में जब रखते है

जख्म पुराने कब भरते है
तिल तिल कर हम मरते है

है मुश्किल जिन राहों पर चलना
रह व्ही पसंद हम करते हैं

रोशन होता आलम सारा
दिए प्यार के जब जलते हैं

हर दिन उगता नए मसलों के संग
हम तुम जिनमें उलझे रहते हैं

इश्क किया तो बेख़ौफ़ निभाइए
जलने दो उन को जो जलते हैं

खो देते मौका जो आगे बढ़ने का
हाथ वाही जीवन बाहर मलते हैं

प्रीत निबाही न गई उनसे
और खफा हम खुद से रहते हैं

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