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दास्ताँ अपनी सुनानी है ?

कुछ कही कुछ अनकही
कुछ कही कुछ अनकही
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दास्तां अपनी सुनानी है

दास्ताँ अपनी सुनानी है
आग दामन में लगानी है ?

सरासर तेरी नादानी है
हर कोशिश जब बेमानी है

दिखाए वो राह मुश्किल में
उसके होने की निशानी है

साहिलों की कश्तियों से बस
ख़त्म अब रंजिशें करानी हैं

आ कहीं से रंगो – बू लाये
सूनी बगिया फिर सजानी है

गुनगुनाती सी जो गुजरे
बस वही तो जिंदगानी है

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