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नाप ले थकन जो पैरों की

कुछ कही कुछ अनकही
कुछ कही कुछ अनकही
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नाप ले थकन जो पैरों की

उजड़ा है जाने कब से दिले- दयार
साये भी उसकी यादों के बेगाने हुए
जीते है बन के जजीरे इंसान अब तो
वो महफिले वो रौनकें सब फ़साने हुए
थे किते करीब छत से वो माहो- अंजुम
शहर में आये जब से, दीदार उनका किये ज़माने हुए
हैं पेशानी पर उनकी बस तेवर ही अब तो
खुल के मुस्काये तो ज़माने हुए
चलेगा खामोशियों के भरोसे यूँ कब तक
जिंदगी का कारोबार
पुराने अब तो सारे बहाने हुए
भीड़ भरे शहरों में भटक रहे हम तुम
खुद से मिले भी कितने जमाने हुए
है बस अब तो तन्हाई का संग
जो अपने थे वो कब के बेगाने हुए
नाप लेते थे थकन जो पैरों की
गुम जाने कहाँ वो पैमाने हुए
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