कुछ कही कुछ अनकही
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फेर कर नज़रें चला गया जो
फेर कर नजरें चला गया जो …
क्या पता उसको क्या क्या …
कहर उस एक पल में ढा गया वो …
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वो जो सबसे ज्यादा अपना होता है ….
न जाने क्यों वही सबसे ज्यादा ..
पराया भी होता है …
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रिश्तों के पुल कितने ,बेगानों के लिए बना डाले हमने …
वो जो सबसे करीब था किनारे खड़ा बस तकता रहा …
इक दुआ सलाम ,दो मीठे बोलों को तरसता रहा …
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नई मंजिल नई राहों की खोज में निकले हैं जो ….
मंजिल तक पहुंचेंगे तभी वो …
खुद का पता मालूम हो जायेगा जिस पल उनको ….
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सितम कर के हार गया वो ….
जब न बदले मेरे इरादे …
तो मेहरबां हो गया वो ……
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दिल की तारों की झंकार से निकला जो नग़मा
प्यार का पैगाम होगा या …
होगा भूला हुआ दर्द का कोई अफसाना …
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