कुछ कही कुछ अनकही
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बात बनती नज़र नहीं आती
बात बनती नज़र नहीं आती
जब से उनकी खबर नहीं आती
काफिले हसरतों के थक गए पर
मंज़िलों की रहगुजर नहीं आती
बेरुखी नजरों में है ये कैसी
जिधर हैं हम उधर नहीं आती
कर लेते हाले -दिल बयां ईशारों में
बात करनी अगर नहीं आती
दिल जैसी चीज़ जो दी इक बार
लौटकर फिर वो घर नहीं आती
कर देती थी उजाले घर घर में
इन दिनों वो सहर नहीं आती
ख़ामशी पर यकी तो कर के देख
ये घडी लौटकर नहीं आती
चांदनी संग कभी ले के चाँद को
क्यों ज़मी पर उत्तर नहीं आती
जिन्दगी मेहरबां नहीं इतनी
वक्त पर कोई मेहर नहीं आती
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