कुछ कही कुछ अनकही
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मुद्दों की सुनवाई का
दौर नहीं ये सच्चाई का
जज्बातों की न गहराई का
दौर ये मर्यादाओं की रुसवाई का
फैशन आया चेहरे की रंगाई पुताई का
दोष ये सारा है वक्त हरजाई का
रोली का टीके का ,राखी का. कलाई का
सिमटा दूरियों में रिश्ता बहन भाई का
ब्याह शादी में ठुमके वो बजना हवा हवाई का
गुम हुआ साज़ सुरीला वो शहनाई का
सज जाना बड़ी बड़ी दुकानों में महंगी मिठाई का
दिखता नहीं किसी दुकान पर नाम चाचा हलवाई का
चुपचाप गुजर जाना वो मौसम की आवाजाई का
नाम तक याद नहीं अब तो हमको पुरवाई का
दो चार आने में वो दुप्पटे की रंगाई का
दौड़ के जाना रंगरेज़ के पास वो छोटे भाई का
पहनावों ने बदला रंग ढंग ताऊ ताई का
डर नहीं अब किसी को जगहंसाई का
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