कुछ कही कुछ अनकही
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है फ़िक्र सबकी सिवा अपने
फिर भी है कुछ खफा अपने
दिन न आये वो कभी यारब
गैर बन दे जब सज़ा अपने
अरसे से खत न कोई आया
भूल गए शायद पता अपने
फिरते थे लेके भरम दिल में
साथ देते है सदा अपने
दूर हों मजबूर हों फिर भी
देते अपनों को दुआ अपने
जिक्र महफ़िल में सभी का होगा
हाँ मगर साथी सिवा अपने
वक्त आया है अज़ब कितना
एक पल में हो जुदा अपने
जीने केहैं मायने तब ही
जब रहे संग बस सदा अपने
छोड़ कर क्यों चले जाते हैं
इस जहां से कहाँअपने
गैरों से क्या हम करें शिकवा
हो न हमसे बस खफा अपने
सरोज सिंह
10 /03 /२०१७
मेलबोर्न
समय ;11 .36 सुबह
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