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माँ जिसका एक धर्म एक जड़ एक किताब
जो एक एक करके अपने कोख में नौ माह तक रख कर तीन चार बच्चों को जन्म देती है फिर उन्ही बच्चों में से कोई चोर कोई सिपाही बनता है तो कोई आसाराम तो क्या कहा जाय माँ की ममता का कसूर है या बच्चों के ज्ञान का अब किसको कटघरे में खड़ा किया जाय .
एक आम का पेड़ जिसका एक ही जड़ एक ही मिटटी एक ही माली
जिसके अनेक डाल हर डाल के आम अलग तरह के कुछ में कीड़ा कुछ खट्टे कुछ मीठे कुछ के डाल मोटे कुछ के डाल पतले तो अब किसका कसूर उस गुठली का जिस से पेड़ हुआ या उन डालों का जो पूरी तरह अपने जड़ से ऊर्जा नहीं ले सके .
आज कल कुछ लेखक ऐसे हैं जिन्हे सिर्फ अपने लेख को लिख कर लेख की गिनती बढ़ाने की फ़िक्र है नाम को छपवाने का जनून है न देश की चिंता है न प्रेम की चाहत है. दूसरे के तरफ एक ऊँगली उठा कर बिना सोचे बिना समझे बिना तौले कुछ भी बोल देने लिख देने को लेखक और समाज सुधारक होने का दावा कर लेते है जबकि आज का समय इलेक्ट्रॉनिक मिडिया और प्रिंट मिडिया का है हमने क्या कहा क्या लिखा वो हमारी ज़ुबान से निकली हुयी बात और पेन से लिखे हुए शब्द एक सबूत बन जाते हैं .
ठीक उसी तरह आज यहां इस मंच पर भी कुछ ऐसे भाई हैं जिन्हे सिर्फ लिखना आता है और अपने नाम को छपवाने आता है मगर मालूम नहीं है के ये कलम कितना शक्तिशाली होता है यही कलम है जिस से आग लगायी जाती है यही कलम है जिस से आग बुझाई जाती है यही कलम है जिस से जज किसी को फांसी तक पहुंचता है यही कलम है जिस से किसी को इंसाफ दिलाया जाता है .
कलम कहता है के मैं एक जंगल का खर हूँ : अगर चाहो तो मैं मोती की लर हूँ
आज उसी कलम को आग लगाने की नियत से उठाया जा रहा है नफरत की आंधी को बुलाया जा रहा है सुख शांति को भंग करने की कोशिश की जा रही है कही इस्लाम को बुरा कहा जा रहा है तो कही कुरान को ग़लत कहा जा रहा है तो कही गीता पर शक किया जा रहा है कही धर्म को बदनाम किया जा रहा है तो कही देश के राष्ट्र पिता महात्मा गांधी की अज़मत शान व बलिदान पर शक किया जा रहा है इसी कलम से रामायण लिखा गया तो इसी कलम से महाभारत भी आज फिर है कोई जो देश की शांति और चैन के खातिर एक नया और सरल रास्ता बनाये आपस में लड़ते हुए भाइयों में सुलह कराये नफरत की आग में जलते हुए देश को प्रेम और शांति का पाठ पढ़ाये सोते हुए भाईयो को जगाये तालीम की रौशनी जलाये हर तरफ से हम एक हैं नेक है नारा लगाये काश आज हमारा कुछ ऐसा करता कुछ ऐसा लिखता के हर तरफ अमन चैन शांति होती प्रेम होता हमारी एक ताक़त होती हम दुनिया में नंबर एक होते हमारे गाओं व मोहल्ले में भी वो खुशहाली होती रौशनी होती तालीम होती हॉस्पिटल होता दुनिया की वो हर चीज़े होतीं जो दिल्ली मुंबई कोल्कता मद्रास या बड़े शहरो में है वो भी एक भारतीय है जिसे मालूम नहीं के धर्म क्या है ज़ात क्या है गीता क्या है कुरान क्या है यहां तक के इंसान क्या है जंगल घर है पेड़ के पत्ते बिस्तर हैं तो नदी का पानी किस्मत है तीर तलवार बंदूक चलाना शौक़ है नाम उनका नक्सली तो कही आतंकवादी तो कहीं चम्बल का डाकू है .
जो आज तक खुद को इंसान नहीं बना सके वो कैसे गीता क़ुरान को समझ सकेंगे कैसे धर्म अधर्म को समझेंगे वो कैसे किसी के दर्द को समझेंगे लोहे पर अगर सोना का पानी चढ़ जाए तो वो सोना नहीं होता लकड़ी पर अगर ताम्बे अगर चांदी का पानी चढ़ जाए तो चांदी नहीं होता शेर की खेल अगर भेड़िया पहन ले तो वो शेर नहीं होता बाबा संत फ़क़ीर का भेस धारण कर लेने से बाबा संत फ़क़ीर नहीं होता ठीक उसी तरह से खुद को कुछ भी कहने से कुछ नहीं होता जब तक वो गुण न हो उसकी पहचान न हो उसका प्रमाण न हो .
इसी लिए मैं कहना चाहूंगा के पहले शब्द को तौलो फिर बोलो ज़हर न घोलो इस लिए के देश का हर नागरिक पहले हिंदुस्तानी है फिर भाई फिर हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई है सबका बाप एक आदम हव्वा सबकी माई हैं .
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