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हमसे राजनीती

Great India
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हम अगर चाहें तो अपने भविष्य को उज्जवल बना सकते हैं एक एक पल को यादगार और बेमिसाल भी बना सकते हैं मगर जब हम चाहेंगे तब . जबकि हर मनुष्य का सपना भी यही होता है के हमारे पास सब कुछ हो अच्छा घर कार और बहुत सी दौलत हो जो हमें हर तरह का सकून दे सके शांति दे सके चैन मिले नाम हो इज़्ज़त हो रुतबा हो और ताक़त भी हो सब कुछ हो कुछ भी ऐसा बाक़ी नहीं रहे जो हमें चाहिए इसी धुन में हमारी ज़िन्दगी गुजरने लगती है और हम अपने मक़सद और चाहत को पाने के लिए इतना दूर निकल जाते हैं के ख्याल ही नहीं रहता के क्या मिल रहा है और क्या छीन रहा है बस सामने की मंज़िल दिखाई तो देती है मगर मेरे पीछे क्या रह गया वो नज़र नहीं आता सबसे पहले जिसकी ज़रुरत होती है वो है रोटी यानि चैन का भोजन जो शरीर के लिए सबसे ज़रूरी है जिसके बिना चल ही नहीं सकता जो हमारे या हर जीव जंतु के लिए सर्व प्रथम है हर गाड़ी हर इंसान हर जीव जंतु के शरीर में एक जगह है जो सिर्फ भोजन से ही भरता है और उसकी ज़िन्दगी वहीँ से शुरू होती और चलती है .

भोजन
क्या हमने कभी सोचा है के जो भोजन हम करते हैं उसमे कुछ कमी है के नहीं सवक्ष और पवित्र है के नहीं उसमे किसी की आह और श्राप तो नहीं है वो किसी का हक़ तो नहीं जो हम खा रहे हैं कहीं ऐसा तो नहीं के कोई अपना पेट बांध कर हमको दिया और वो भूखा है और हम खा रहे हैं जिस पैसे से हमने भोजन ख़रीदा है वो किसी गरीब या लाचार का तो नहीं जिस से हमारा पेट भर तो जाएगा मगर आत्मा को शांति नहीं मिलेगी वो भोजन हमारे शरीर में जो रक्त बनाएगा वो कैसा बनेगा उस से शरीर मोटा और ताक़तवर तो होगा मगर वो ताक़त नहीं रहेगी जो हमारे काम आ सके और इसी लिए एक धर्म कहता है के तुम जो भी जाएज़ कमाओ उस में से कुछ गरीबों और यतीमों का भी हक़ है उसे तुम मत खाओ तुम्हारी कमाई में जिनका भी हक़ है उनको दो इस लिए हर चालीस में से एक तुम्हारे नज़रों के सामने रहने वाले तुम्हारे पास रोने वाले गरीबों का है अगर वो एक भी तुम खा गए तो तुमने उसका हक़ खाया और वो हक़ तुम्हे जीने और उन्नति के ओर कभी भी नहीं जाने देगा मगर कुछ लोग खाते भी हैं और उन्नति भी करते हैं तो उनका क्या होता है ? ये सवाल आता है तो ऐसे लोगों का अंत भला नहीं होता जो रह जाता है वो देख लेता है और हमें चाहिए के अच्छाई का नक़ल करें बुराई से आँख बंद कर लें ठीक उसी तरह हम रोज़ देखते हैं के जिसको मालिक ने जो खाने के लिए कह दिया है या बना दिया है वो वही खाता है दूसरी चीज़ें उसके सामने रखो तो मुंह फेर लेता है भूखा मर जाएगा मगर खा नहीं सकता जैसे जिसका आहार घास भुस है उसे मांस नहीं खिला सकते जो मांस खाता है उसे घास भुस नहीं खिला सकते यक़ीनन वो बहुत ही विचार धरा के पाबंद हैं जो मालिक ने उनके लिए तय कर दिया वो वही खाते हैं उन्हें अपने आहार पर भरोसा होता है और मालिक पर यक़ीन होता है के उसे उसका जाएज़ और पवित्र और हलाल भोजन ज़रूर मिलेगा घास खाने वाला तंग आकर मांस नहीं खाता सब्र करता है और अपना आहार पा लेता है मगर हम मनुष्य को सब्र नहीं होता और न जाने किन किन राहों में निकल जाते हैं और अपनी पवित्र और हलाल भोजन को भी मिलावट धोका गमन न जाने कितने तरह की बुरे रस्ते से कमाए हुए एक पैसे को हलाल में मिला कर सबको अपवित्र और हराम कर के कहते हैं और हम शुरू हो जाते हैं अपनी सीढ़ी चढ़ना फिर होती है बात दौलत की .

दौलत
काश हम समझ पाते के जो हमारा है वो तो हमारा ही है मगर जो हमारा नहीं होता वो भी किसी न किसी तरह हासिल कर लेते हैं चाहे वो रिश्वत हो चोरी हो गमन हो या झूट से हो या धोखा से हो या किसी भी अन्य रस्ते से हो मगर जब हम हासिल कर लेते हैं तो उसे अपने स्वार्थ में खर्च कर ही लेते हैं खा ही लेते हैं अब खाने से जो बचा उस से एक घर या बंगला बनाते हैं कार और न जाने किस किस तरह की ताक़त पैदा कर लेते हैं फिर पैदा होता जाता है एक तनाव एक लड़ाई का सामान भाई भाई में झगड़ा नफरत क्रोध और हम बन जाते हैं इसी दौलत के लिए मुजरिम , भ्रष्ट , बदनाम और जेल पहुँच कर भी शान से कहते हैं के बड़े लोगों का जेल जाना तो शान है भूल जाते हैं मान और सम्मान छोड़ जाते हैं एक बदनुमा दाग अपनी आने वाले औलाद के लिए अपनी आने वाले कल के लिए समाज को हंसने के लिए क्यूंकि हमारी नज़र सिर्फ दौलत पर होती है नाम पर होती है हम ये भूल जाते हैं के जब भी दौलत गलत रास्ते से आती है तो अपने साथ बहुत सी मुसीबतें और गलत रास्ते साथ लेकर आती है भाई का दुश्मन भाई होने लगता है वो इस लिए के इंसाफ भी हम भूल जाते हैं .
यही से भाई भाई आपस में लड़ जाते हैं और मामला अदालत तक पहुँच जाए तो जन्म से लेकर २० या ३० साल की मोहब्बत को हमेशा के लिए भूल जाते हैं आपस में जो मोहब्बत थी उसे भुला कर नफ़रत में बदल देते हैं फिर ज़िन्दगी भर शायद मिलने का नाम नहीं लेते मगर बहुत ही खूब है आज के नेताओं की नीति जो करते हैं राजनीति ?

राजनीति
बहुत ही अजीब बात है के जब एक पार्टी का नेता जब दूसरे को देखता है तो आरोप का बौछार करता है हर तरह से हमले करता है बुरा भला कहता है नफरत की आंधी चलाता है मगर जब उसकी ताक़त कमज़ोर नज़र आती है और खुद को बेकार समझ लेता है तब उसे अपनी ताक़त और बेबसी को ख़त्म होते देख कर ख्याल आता है के जाने दो जिसे मैं कल कमज़ोर जनता था आज वही उगता हुआ सूर्य है उसी की ताक़त है उसी का रॉब है उसी का दबदबा है चलो उस से माफ़ी तलाफ़ी कर ली जाय उसी में शामिल हो कर अपनी ताक़त को बढ़ा लिया जाय शर्म से कुछ नहीं होता दौलत जो मिली है उसे बचाया जा सके इस लिए नया हासिल करना ज़रूरी है इस लिए अब अपनी सब आरोप और शिकवे को भुला कर गले मिल जाते हैं और एक हो जाते हैं फिर एक दौर आता है के जहाँ गए थे उसकी ताक़त कम पड़ जाती है और अब यहाँ सूर्यस्थ हो रहा है कुछ नाम नहीं बच रहा है और जहाँ पहले मैं था वहां सूर्य अपनी शान से चढ़ रहा है हर तरफ फिर उसी का बोल बाला हो रहा है जबकि उसी से रिश्ता तोड़ कर यहाँ आया था फिर अपने फायदे के लिए अपना सब कुछ भूल कर वापस होता रहता है यानि ये जब जहाँ चाहें बदल कर चले जाएँ मगर हमें नहीं बदलने देंगे हमें अपने पीछे पीछे ही चलाएंगे हमें एक नहीं होने देंगे हमें ताक़तवर नहीं होने देंगे यही आज की इनकी राजनीती है हम चाहें तो इन नेताओं के इस काम से एक सिख हासिल कर सकते हैं के ये अपनी नफरत और अदावत भुला कर आपस में मिल सकते हैं तो हम आखिर क्यों नहीं मिल सकते हम इन से ये सबक तो सिख सकते हैं और इतना तय है के जिस दिन हम एक हो गए फिर ये भी सही हो जाएंगे और हमारा भविष्य उज्जवल होने लगेगा क्यूंकि जब तक हम खुद अपनी राह नहीं बनाएंगे ये कभी भी नहीं बनने देंगे . यही है आज की इनकी राजनीती हम भूल गए अपनी इंसानियत एकता और ताक़त की नीति, जिस में हमारे पुरखों की ज़िन्दगी बीती , जिस से गुज़रती थी हमारी ज़िन्दगी भली भांति, कहीं से भी नफरत की आवाज़ नहीं थी आती, काश ये बात आज हमारे बुज़ुर्गों और नौजवानो को समझ में आती, तो हमारी आज भी ज़िन्दगी बिलकुल संवर जाती हम सीखा सकते इन आज के नेताओं को सही राजनीती तब कहीं जाकर हम बनते दिया और ये होते बाती क्यूंकि बिना दिया और बाती के रौशनी नहीं होती.

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