लेखनी के रंग
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कितना सुन्दर जग यह होगा,
जब सच यह सपना होगा।
वसुन्धरा होगी एक कुटुम्ब,
और यह जग घर अपना होगा।
मानव होंगे पूरी धरा पर,
होगा न कोई हैवान।
मिट जायेंगे वर्ण भेद सब,
होगा न रुढ़ियों का जहान।
खड़ी दीवारें सरहदों पर,
बनाएंगी न दिलों में दीवारें।
सरहद के नाम पर लड़ने वालों की,
मचेंगी कहीं ना चीख पुकारें।
न होगा कोई ऊँच-नीच,
न होगा कोई दास या रंक।
हर कोई होगा एक बराबर,
दिलों में छाया होगा समता का रंग।
होगा नित नया सवेरा धरा पर,
और मनुज चढ़कर ज्ञान रथ पर।
तोड़कर आलस के सारे बन्धन,
दौड़ेगा पल-पल प्रगति पथ पर।
छायी होगी चारों ओर धरा पर,
शान्तिमय सुखद हरियाली।
दमक रही होगी हर चेहरे पर,
खुशियों की चमकती लाली।
मुकेश कुमार यादव
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