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मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के अधीन इस प्रकोष्ठ में भ्रष्टाचार और पक्षपात की हुई लिखित शिकायत

खुल के बोल
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सरकारी विभागों में निविदा के जरिये सार्वजनिक प्राप्तियों या प्रबन्धों का प्रावधान है. इन प्राप्तियों या प्रबन्धों के लिये निविदा आमंत्रण से लेकर उसे पाने वाले के अंतिम चयन तक के लिये दिशा-निर्देश निर्धारित किये गये हैं. केन्द्रीय सतर्कता आयोग द्वारा निविदा सम्बन्धी दिशा-निर्देशों का निर्धारण सार्वजनिक प्राप्तियों या प्रबन्धों में पारदर्शिता बरतने के उद्देश्य से किया गया है. इन सबके बावज़ूद अक्सर ऐसे मामले उजागर होते रहते हैं जिनमें सरकारी-निजी भागीदारी की इस प्रक्रिया में निविदा प्रक्रिया से सम्बन्धित उच्च पदों पर बैठे अधिकारी पक्षपातपूर्ण रवैये के संदेह की परिधि में आ जाते हैं.

नया मामला भारत सरकार के पेट्रोलियम मंत्रालय के एक प्रकोष्ठ में निविदा आवंटन और इसकी प्रक्रिया से जुड़ा है. इसमें निविदा आवंटित करने वाली अधिकारियों पर पक्षपात और भ्रष्टाचार का आरोप लगाया गया है. यह दावा उस समय किया गया है जब भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के लिये प्रधानमंत्री विमुद्रीकरण की अपनी नीति को धरातल पर उतारने में व्यस्त थे.

यह मामला पेट्रोलियम योजना एवं विश्लेषण प्रकोष्ठ का है. शिकायतकर्ता के अनुसार उन्होंने नई दिल्ली में लोधी रोड स्थित ऊपर वर्णित प्रकोष्ठ द्वारा आमंत्रित जलपान-गृह निविदा संख्या पी/1/एडीएमएन.206-17 के लिये आवेदन किया था. 07 सितम्बर, 2016 को इस प्रकोष्ठ से सम्बन्धित संयुक्त निदेशक (प्रशासनिक) का शिकायकर्ता को ई-मेल आता है जिसमें जलपान गृह सम्बन्धित इस निविदा को अंतिम रूप दे दिये जाने की सूचना होती है. इस मेल में शिकायतकर्ता से उनके सावधि जमा रसीद के रूप में सौंपी गयी राशि को स्पीड पोस्ट से भेजने की बात की जाती है जिसकी पुष्टि संयुक्त निदेशक(प्रशासनिक) पहले ही शिकायतकर्ता के मोबाइल संख्या पर कॉल करके कर लेते हैं.

उल्लेखनीय है कि जलपान गृह के लिये आमंत्रित इस निविदा में दो चरणों मसलन तकनीकी बोली और उसमें सफल होने पर वित्तीय बोली का प्रावधान था. इसके बाद ही अंतिम रूप से निविदा पाने वाले का चयन होता. इस बोली में तीन प्रतिभागी शामिल हुए. शिकायतकर्ता को पहले चरण यानी तकनीकी बोली के स्तर पर ही निविदा में अंतिम चयन के लिये गठित तीन सदस्यों वाली समिति द्वारा अयोग्य घोषित कर बाहर निकाल दिया गया. सूचना के अधिकार के जरिये माँगी गयी अयोग्यता के कारण का उल्लेख करते हुए कहा गया कि ईएमडी राशि के रूप में शिकायतकर्ता ने डिमांड ड्रॉफ्ट जमा नहीं करायी. लोक सूचना अधिकारी से मिली इस जानकारी में निविदा सम्बन्धी सामान्य शर्तों( निविदा दस्तावेज़ के संलग्नक -ए के अनुच्छेद-4) का ज़िक्र किया गया. जबकि, अल्पविराम के तुरंत बाद लिखी पंक्ति का आशय यह निकलता है कि,”संलग्नक-ए के अनुच्छेद-4 में यह स्पष्ट रूप से वर्णित किया गया कि निविदा के लिये बिना बयाना राशि(ईएमडी) के मिले आवेदनों को निरस्त कर दिया जायेगा.”अंग्रेजी में लोक सूचना अधिकारी की जानकारी (बदले हुए नाम के साथ) इस प्रकार है-

”The tenderer M/s xxxxx has not submitted the demand draft for the Earnest Money Deposit (EMD)   amount as required in the general terms and condition of the tender (para-4 of Annexure-A of tender document), where it was clearly mentioned that offers received without EMD will be summarily rejected. Accordingly, the bid of M/s. xxxxx was rejected.”

जबकि,शिकायतकर्ता को भेजे गये अपने ई-मेल में संयुक्त निदेशक(प्रशासनिक) ने सावधि जमा रसीद संख्या zzzzz(बदला हुआ) दिनांक 03.08.2016 को लौटाने की बात कही है. आशय यह निकलता है कि निविदा के लिये निर्धारित बयाना(ईएमडी) राशि सावधि जमा रसीद के रूप में शिकायतकर्ता ने जमा कराये थे. ध्यान देने योग्य है कि निविदा में सफल होने वाली और तकरीबन 14 वर्षों से निविदा सम्बन्धित जलपान-गृह का संचालन करने वाली संस्था एक ही है.

केन्द्रीय सतर्कता आयोग के निविदा सम्बन्धी दिशा-निर्देशों के अनुसार आवेदकों से आवेदन के साथ बयाना राशि(ईएमडी) जमा कराने का उद्देश्य महज उनकी निविदा-आवेदन के प्रति गम्भीरता सुनिश्चित करना या उसकी पुष्टि करना है. दिशा-निर्देशों में स्षष्ट रूप से वर्णित है कि बयाना राशि  डिमांड ड्रॉफ्ट, एफडीआर या बैंक गारंटी के रूप में जमा करायी जा सकती है. इस लिहाज से निविदा-आवेदन के साथ एफडीआर को क्या सिरे से खारिज किया जा सकता है? यह एक सवाल है जो सरकारी विभागों में निविदा के लिये बनी समितियों के सदस्यों के व्यक्तिगत या सामूहिक विवेक आधारित निर्णयों पर प्रश्नचिन्ह खड़ी करती है. वर्ष 2015 में तुर्की में आयोजित होनेवाले जी-20 देशों के समूह  ने सार्वजनिक प्राप्ति या प्रबन्ध में सत्यनिष्ठा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से जिन सिद्धांतों का वर्णन किया उनका आधार नागरिकों के मन में डेरा जमा रहे उस अविश्वास को समाप्त करना है जो ऐसी प्रप्तियों में भ्रष्टाचार, पक्षपात की जननी है. बिना पूर्ण पारदर्शिता के यह सम्भव नहीं है और यही बेहतरीन शासन की नींव है.

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