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सरकार बचाने के लिए सांसदो की खरीद फरोख्त को रहस्योद्धघाटन तो विकीलिक्स ने कर दिया, मगर कोई ऐसा अहम सबूत नही है जो किसी को इस घटना का मुख्य अपराधी बनाऐ। यह सब जानते है कि संसद में पैसा आया, सरकार विरोधी नारें लगाये गये पर पैसा कौन और क्यू लाया इस बात का अभी तक कोई जवाब नही है। विकीलिक्स के खुलासे के बाद भारतीय राजनीति में जो हडकंप मचा है उससे देख कर यह लगता है कि राजनीतिक दल अपने स्वार्थ के लिए देश को बदनाम करने में ज़रा भी हिचकिचाते नही। जिससे भारत की छवि तो खराब हो ही रही है साथ ही अन्य देशो को एक मौका मिल रहा है लोकतंत्र की कमजोरी भापनें का। क्या एकजुट होकर इस मामले को सुलझाया नही जा सकता ? क्यू हर रोज एक दूसरे को निशाना बना के खबरो का बाज़ार गर्म किया जाता है ? अखिर कुछ तो ऐसे प्रावधान हो जिससे असली अपराधी की पहचान हो सके । खासकर जब पता हो के अपराधी संसद मे ही है। अगर यही हाल रहा तो फूट डालो और शासन करो की नीति शायद एक बार फिर भारत पर सटीक बैठेगी।
मुकुल शर्मा ‘जातुषकर्ण्य़’
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