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पहले खुद को सुधारे ।

मेरा नज़रिया
मेरा नज़रिया
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अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जो जंग छेडी वह जनक्रंति बन के देश के सामने आयी। वृद्ध, युवा, चर्चित हस्तिया लगभग हर वर्ग से अन्ना हजारे को समर्थन मिला….आजाद भारत के जनतंत्र की शायद यह पहली बडी जीत थी। लोगो में एक अलग उत्साह एक नया जोश देखने को मिला।… लोगो ने शपथ तक ली भ्रष्टाचार को जङ से खत्म करने की, पर उन्ही लोगो में से ना जाने कितने ही लोगो अब भी भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे होगें। जिस भ्रष्टाचार से आज हम इतने परेशान है उसको फैलाने में भी कही ना कही हमारा भी हाथ है। एक आम आदमी जिसकी कोई पहुँच नही है… उसे मजबूरी के चलते भ्रष्ट होना ही पडता है क्योकि उसकी मदद करने वाला कोई नही है, फिर चाहे छोटा काम हो या बडा…बच्चे का एडमिशन करना हो या फिर रेलवे की खिडकी से टिकट करना हो, हर जगह भ्रष्टाचार मौज़ूद है। इंसान ने अपनी जरूरतो को जल्द से जल्द पूरा करने के लिए भ्रष्टाचार की सुविधा का इस्तमाल किया।… किसी की कुछ मजबूरीया रही तो किसी ने उन मजबूरीयो का फायदा उठाया और ऐसे ही भ्रष्टाचार अपनी जङे मजबूत करता चला गया।… इंसान ने भ्रष्टाचार को अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में अपना सा लिया है जिसका उन्हे कोई गिला नही, मानो भ्रष्टाचार के बिना उनके काम होना असंभव हो।
अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम तेज़ की तो वाकई कुछ लोगो की आँखे खुली और कुछ भेड़ चाल के चलते बाकी लोगो के साथ हो लिए…. जिसका असर यह हुआ कि जनक्रंति के दबाव में सरकार को झुकना ही पडा। मगर भ्रष्टाचार अभी भी ज्यों का त्यों है क्योकि जब तक हम अपने अंदर से भ्रष्टाचार के डंक को नही निकाल फैकते तब तक देश से भ्रष्टाचार के जहर को खत्म करना मुश्किल ही नही असंभव सा नज़र आता है।… आज जरूरत है एक ऐसे समाज की जहाँ दूसरे को भ्रष्ट बोलने से पहले अपने अंदर के भ्रष्टाचार को खत्म करें तभी शायद भ्रष्टाचार मुक्त देश को सपना देखा जा सकता है।

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