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लीबिया एक और ईराक बनने के कागार पर है जिसका श्रेय अमेरिका समेत कुछ अन्य यूरोपीय देशो को भी जाता है। गठबंधन सेनाओ द्वरा हो रहे हवाई हमलों में लीबिया के तानाशाह कर्नल मुअम्मर गद्दाफी के ठिकानें तो ध्वस्त हो ही रहे है, साथ ही क्रूज मिसाइलें आम नागरिको को अपना शिकार बना रही है। भले ही गठबंधन सेनाएं इस बात को नकार रही हो के उनके हमलें से नागरिकों की मौत नही हुई है मगर शायद ही कोई इस झूठ को सच मानने के लिए तैयार हो। जिस तरीके से एक देश को अन्य देश बर्बाद करने पर आतुर है उसको देखकर यह नही लगता कि यह मानव हित के पश्र में है।
तानाशाह सरकारो का देर सवेर अंत होता रहा है फिर चाहे वो सद्दाम हुसैन की सरकार हो या हिटलर की। पर जिस तरीके से गठबंधन सेनाओ ने लड़ाकू विमानो से लीबिया में बमवर्षा की उसकी कल्पना शायद ही कभी लीबिया के नागरिको ने की हो । सेनाए लगातार गद्दाफी के गढ़, सैन्य अडडो और सुरश्रित स्थानो पर हमले कर रही है जिसमे सिर्फ आम नागरिको को मौत के घाट उतारा जा रहा है। हॉलाकि भारत इन हमलो के प्रति पहले ही नखुशी ज़ाहिर कर चुका है पर किसी देश की सरकार बनाने को हक अन्य देशो को कैसे दिया जा सकता है ? क्या सयुंक्त राष्ट्र सुरश्रा परिषद मानव हित के बारे में ना सोचकर , अमेरीका और अन्य यूरोपीय देशो की जोर अजमाइश से बाकी देशो पर दबाव बनना चाहती है ? अगर ऐसा ही चलता रहा तो लीबिया जैसे ओर ना जाने कितने देश शक्तिशाली देशो का शिकार होते रहेगें।
मुकुल शर्मा ‘जातुषकर्ण्य’
नेहरु नगर, गाज़ियाबाद.
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