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आतंकी हमलें कब तक ?

मेरा नज़रिया
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देश की अर्थिक राजधानी मुंबई को एक बार फिर से आतंकी हमलो का शिकार होना पडा। इस से पहले भी मुंबई को कई आतंकवादी हमलो से रुबरू होना पडा है। फिर चाहे वो 1993 के बलास्ट हो या 2008 मे आतंकवादियो द्वारा किये गये हमले… एक तरफ जहां आतंकवादी संगठन लगातार हमले कर देश की सुरक्षा पर सवालिया निशान लगा रहे है वही दूसरी तरफ सरकार भी जाँच कमेटी बनाकर और पीडितो को मुआवजा देकर हाथ खडें कर लेती है। हमलों में नुकसान होता है सिर्फ आम आदमी का, ना जाने कितने ही बेगुनाहो की जान जाती है…  कितने ही घरो के चिराग बुझ जाते है मगर फिर भी गुनाहेगारो को सुरक्षित रखा जाता है। कसाब जिसका एक ज्वलंत उदाहरण है। केन्द्र सरकार तो लगभग पुरे मामलें में अपने हाथ पाछे कर चुकी है। काग्रेंस पार्टी के महासचिव राहुल गाँधी ने तो यहा तक कह दिया कि ऐसे हमलो को रोका नही जा सकता। जिसे जनता भविष्य का प्रधानमंत्री मान रही हो उसके द्वारा इस तरह का बयान आना यकीनन निदांनीय है। बुधवार को मुंबई में क्रमबद्ध हुए तीन धमाकों में 18 लोगों की मौत हो गई और 131 लोग घायल हो गए। इन धमाकों पर राहुल गांधी ने इराक और अफगानिस्तान का उदाहरण देते हुए कहा कि आतंकी हमले किसी भी देश पर हो सकते हैं और अमेरिका जैसा शक्तिशाली देश आतंकी हमले को रोक पाने मे नकाम रहा है। खुफिया ऐजेंसियो तक को राहुल ने अपने बयान से खोखला साबित कर दिया है। काग्रेस महासचिव के बयान से ऐसा लगता है मानो देश का सुरक्षा तंत्र पुरी तरह बिखर गया हो और आम आदमी को ही अपनी सुरक्षा करनी पडेंगी।

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