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जिस देश के संविधान में जाति-धर्म का भेद भाव रखने की मनाही हो उस देश में आरक्षण को ना जाने क्यू इतना महत्व दिया जाता है। आरक्षण की माँगो को लेकर कभी कोई जगह जगह विरोध प्रदर्शन करता है तो कभी कोई तोड-फोड और आगजनी कर के अपनी माँगो को मनवाने का दबाव बनाना चाहता है। जहॉ सब नागरिको को समान अधिकार हो वहा आरक्षण को नाम पर यह भेद भाव क्यो नजर आता है ? सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुँचा कर या आम जनता को परेशान कर अपनी माँगो को मनवाना कहा तक ज़ायज है ? इस तरह के आंदोलनो से जहा जाति और समुदाय में भेद भाव की भावना आती है वही देश की एकजुटता में भी दरार पडती है। दूसरी ओर राजनीतिक दल भी अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए ऐसे आंदोलनो में पीछे नही रहते ओर आग में घी डालने का काम करते है। उन्हे इसमें अपना वोट बैंक नजर आता है इसलिए राज्य सरकारे हाथ पर हाथ धरे बैठी रहती है और विपक्षी दल उनका साथ निभाते नजर आते है। पिछले दिनो गुर्जरो ने आरक्षण को लेकर बवाल मचाया था जिसके नक्शे कदम पर अब जाट समुदाय के लोग कदम बढा रहे है। ऐसी स्थिति में आरक्षण के जिन्न को बंद करने के लिए शायद कुछ और कानूनो के निर्माण की जरूरत है जिस से देश का विभाजन करने वालो पर शिकंजा कसा जा सके।
– मुकुल शर्मा जातुषकर्ण्य
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