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भूमि अधिग्रहण को लेकर भट्टा पारसौल में जो आग लगी उसमें राजनीतिक दल हाथ सेकनें से पीछे नही रहे। राज्य में दबदबा रखने वाले कांग्रेस, भाजपा, सपा और रालोद आदि प्रमुख दलो नें मायावती सरकार के खिलाफ जमकर मोर्चा संभाला। सरकार से इस्तीफे की माँग की गई, जगह जगह विरोध प्रदर्शन किये गये…. मगर यह सब किसानो के लिए नही बल्कि अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए किया गया क्योकि साल भर के भीतर राज्य में विधानसभा चुनाव होने वाले है। जिसके लिए लगभग सभी दलों ने कमर कसनी शुरु कर दी है और ऐसे में भला कोई कैसें पीछे रह सकता था। मगर जब किसानो और पुलिस के बीच खुनी संघर्ष अपनी चरम सीमा पर था तब कहा थे किसानो को दर्द समझनें वाले, तब क्यों जनता प्रतिनिधित्व करने वालो ने आगे आकर शांति सें मामला सुलझानें की बात नही कही…. पर जैसें ही मामला शांत होता दिखा आग में घी डाल दिया गया। किसानो को पूर्ण समर्थन देने की बात कही गयी और संघर्ष में मारे गये पुलिसकर्मीयो तक को दोषी बताया गया, उन पुलिसकर्मीयो को जो ऐसे नेताओं की सुरक्षा करते है। किसी की भी जान जाऐ मगर राजनीतिक दलों को राजनीति से प्यारा कुछ नही लगता…. ऐसी राजनीति किस काम की जो देश के नागरिको को आपस में ही दुश्मन बना दें। जिस देश में जय जवान जय किसान का नारा दिया जाता है वहा ऐसी घटना को होना यकीनन शर्मनाक है।…. फिलहाल मामले को गंभीरता से लेते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय की ओर से गाँव की भूमि का अधिग्रहण रद्द करने को जो फैसला आया उससे ना सिर्फ किसानो को राहत मिली है बल्कि राजनीतिक दलों के आरमानों पर भी पानी फिर गया। वरना ना जानें कब तक राजनीतिक दल लोगों को भडका कर इस मामलें को भूनानें में लगें रहते। अब भले ही वो न्यायालय के फैसले का श्रेय लेना चाह रहे हो मगर सच यही है के आगामी चुनावो को ध्यान में रखते हुए राजनेताओं ने रणनीतियों को प्रयोग में लाना शुरु कर दिया है।
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