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श्रावण मास की पूर्णिमा को रक्षा बंधन का पर्व मनाया सम्पूर्ण भारत में बडी धूम धाम, और श्रद्धा से मनाया जाता है ! वास्तव में पूर्व काल में यह पर्व हय ग्रीव जयंती के रूप में मनाया जाता था श्रवण नक्षत्र के प्रथम चरण में हयग्रीव अवतार हुआ था ! भारतीय बारह मासों के नाम नक्षत्रों के नाम पर ही होते हैं इसी क्रम से श्रावण मास के अंत में श्रवण नक्षत्र में श्रावणी पर्व सम्पूर्ण श्रावण मास के पूजा विधान की पूर्णता रूप में मनाया जाता है !
इसे रक्षबंधन, राखी, पौंची या मौंजी बंधन के रूप में भी मनाया जाता है ! वास्तव में यह त्योहार धार्मिक,सामाजिक, सांस्कृतिक,एवम आध्यात्मिकपर्व है !
आइये विचार करें कि क्या यह केवल भाई बहन से ही सम्बंधित त्योहार है ?
एक समय जब देवासुर संग्राम में देवराज इंद्र युद्ध में हार गये तब उनकी पत्नि शची ने अपने धार्मिक पूजा पाठ, जपतप की शक्ति से अभिमंत्रित करके सुरक्षासूत्र इंद्र के हाथ पर बांधा था जिससे इंद्र की विजय हुई ! इससे इद्राणी शची इंद्र की बहन के रूप में तो स्थापित नहीं हो गई वह पत्नी थी और पत्नी ही रही !
जब महाभारत के महायुद्ध में अभिमन्यु युद्ध के लिये जा रहा था तो उसकी दादी कुंती ने अपने तप बल की शक्ति से अभिमंत्रित रक्षासूत्र उसकी कलाई पर बांधा था और जबतक अभिमन्यु के हाथ में रक्षा सूत्र रहा वह अजेय रहा ! जैसे ही कौरवों के बहकावे में आ कर रक्षासूत्र खोला उसका मरण हो गया ! तो क्या कुंती अभिमन्यु की बहन हो गई !
एक समय की बात है जब भगवान विष्णु अपने वामन अवतार के समय में राजा बलि को दिये हुए वचन को निभाने के लिये बलि के द्वारपाल के रुप में उसकी रक्षा कर रहे थे ! जब देवगण विष्णु की अनुपस्थिति से दुखी हो गये और लक्ष्मी जी भी प्रभु का वियोग सहन न कर सकीं तब लक्ष्मी जी अपने पति भगवान विष्णु को वापस लाने हेतु बलि के पास गई और राजा बलि का पूजन कर उसे रक्षासूत्र बांधा और उसका राज्य स्थिर रहनेका आशीर्वाद दिया ! जब बलि ने लक्ष्मी जी को बहन के रुप में स्वीकारते हुये उनसे कुछ मांगने को कहा तब लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को मांग लिया ! राजा बलि ने कहा कि आपने मुझे भाई के रुप में स्वीकार करके जो रक्षासूत्र के रूप में कवच बांधा है इससे निश्चय ही मेरी रक्षा होगी और मेरा राज्य स्थिर होगा ! इतना कहा कर बलि ने भगवान को मुक्त कर दिया और बहुत सी भेंट दे कर विदा किया ! तभी से इस दिन बहनें अपने भाईयों को अपने पूजा पाठ आदि समस्त धर्म कर्म के पुण्य से सिंचित रक्षासूत्र बांध कर उनकी रक्षा सुख स्मृद्धि की कामना करती हैं!
हमारे हवन यज्ञ पूजा पाठ आदि कर्म के समय पुरोहित यजमान को और यजमान पुरोहित को दोनों ही एक दूसरे को सूत्र बांधते हैं ताकि जब तक कर्म पूर्ण न हो दोनों परिवारों में अशुभ न होवे !
प्रजा भी अपने राजा को इसी भावना से राखी बांधती थी कि राजा प्रजा का समुचित ध्यान रखे प्रजा की सब तरह से देख भाल करे रक्षा करे
इतिहास साक्षी है हमारे भारत वर्ष के विद्वानों और राजाओं ने बडे से बडा बलिदान दे कर भी रक्षा बंधन के धर्मको निभाया है !
पोरस और सिकंदर के बीच युद्ध होने से पहले सिकंदर की प्रेमिका रुक्साना ने पोरस को भाई बना कर राखी बांधी थी और उससे सिकंदर को न मारने का वचन लिया था जो पोरस ने पूरी तरह निभाया ! सिकंदर को वापस लौटने के लिये मजबूर करने वाली रुक्साना ही थी !
अलाउद्दीन खिल्जी और राजपूत राणा भीम सिंह के बीच युद्ध से पहले खिल्जी के बेगम ने भीम सिंह को राखी बांध कर भाई बना लिया था तब रानी पद्मिनी ने खिल्जी को भीम सिंह के छोटे भाई राणा रतन सिंह के द्वारा मारे जाने से बचाया था !
और आज के युग में हम इस रक्षा सूत्र के रूप में बहन की कामनाओं का कितना बढिया आदर करते हैं बहन को कुछ रुपये कुछ उपहार आदि दे कर अपना कर्तव्य पूर्ण समझ लेते हैं !
इस बार रक्षा बंधन के दिन 1:50 दोपहर तक भद्रा व्याप्त है इसलिये रक्षा बंधन का पर्व दोपहर 1:50 से शाम 4:16 बजे तक मनाया जाना चाहिये ! जो शुभ काल है !
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