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कल दिल्ली विधान सभा में बहस देख कर यह महसूस किया कि पार्टियां जो विपक्ष में हैं उनका एक ही सिद्धांत होता है कि उन्होंने हर मुद्दे पर विरोध ही करना है। हमारे नेता कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं। ऐसा ही दृश्य दिल्ली विधान सभा में बीजेपी के नेता हर्ष वर्धन के भाषण से हुआ। बीजेपी नेता कहते थे कि हम रचनात्मक सहयोग देंगे लेकिन उन्होंने तो आम आदमी पार्टी का केवल विरोध ही करना था। बीजेपी ने अपनी भूलों से कुछ भी सीखने की कोशिश नहीं की बल्कि आम आदमी पार्टी के किये काम में नुक्ता चीनी ही करते रहे और कमियां निकलते रहे। नव निर्वाचित मुख्य मंत्री अरविन्द केजरीवाल ने तो स्पष्ट कर ही दिया था और मुद्दों पर समर्थन माँगा था तो कम से कम बीजेपी को जिन जनता से सम्बंधित मुद्दों पर तो दलगत राजनीती से ऊपर उठ कर समर्थन करना चाहिए था। जबकि बीजेपी ने अटल जी के नेतृत्व में नरसिम्हा राव की सरकार बचाई थी उस समय तो उनके लिए कांग्रेस अछूत नहीं थी फिर आज क्यों कांग्रेस को अछूत समझा जा रहा है। क्या जनता को दोबारा इलेक्शन के बोझ से बचाना कांग्रेस कि या आम आदमी पार्टी की गलती है। लगता है बीजेपी ने किसी भी चुनाव से सीख नहीं ली। सभी राजनीतिक पार्टियों को दिल्ली के चुनावों से सीख ले कर केन्द्र में और अपने अपने प्रदेश में जनता के प्रति जवाब देह सरकार बनानी चाहिए। सबसे पहले बीजेपी हरियाणा के प्रदेश अध्यक्ष रामबिलास शर्मा जिस समय बंसीलाल सरकार में शिक्षा मंत्री थे, तब उन्होंने ही शिक्षा विभाग में अतिथि अध्यापक रखने की प्रथा चलाई थी। और इस प्रथा को किसी भी पार्टी की सरकार ने इसे गलत नहीं ठहराया और यह प्रथा आज भी ज्यों की त्यों कायम है। आज तक किसी भी पार्टी की सरकार ने सरकारी स्कूलों में सुधार की कोशिश की। यदि कांग्रेस हरियाणा में तीसरी बार सरकार बनाना चाहती हैं तो जल्दी से सभी कालोनियों को नियमित करके उन में सभी मूल भूत देने में किसी भी तरह कि देरी न करे और स्कूलों में सभी अतिथी अध्यायकों को फ़ौरन नियमित करे।
मुनि राज शर्मा
panditmunirajastro.com
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